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________________ ॥ पापतवपरिशिष्टम् ॥ (१८७) ॥ आश्रवतत्त्वम् ॥ - rec+ अवतरण- आ गाथामां सामान्यथी आश्रववत्वना ४२ मे द गणावे छे. ॥ मूळगाथा २१ मी. ॥ इन्दियकसायअव्वय-जोगा पंच चउ पंच तिन्नि कमा किरिया पणवीसं-इमा उ ता अणुक्कमसा ॥२१॥ ॥ संस्कृतानुवादः॥ इन्द्रियकषायावतयोगाः पञ्च चत्वारि पञ्च त्रीणि क्रमात् । क्रियाः पंचविंशतिः, इमास्तु ता अनुक्रमशः ॥ २१ ॥ ॥ शब्दार्थः॥ इंदिअ--इन्द्रियो. कमा--अनुक्रमे कसाय--कषाय. किरियाओ-क्रियाओ अव्वय--अव्रत पणवीस-पच्चीश जोगा-योग इमा--आ (आगळ कहेवाती) पंच-पांच उ--वळी (अथवा पादपूयेथे) चउ.-चार . ताओ-ते क्रियाओ तिनि-त्रण. अणुक्कमसो--अनुक्रमे गाथार्थ:-अनुक्रमे ५ इन्द्रिय-४ कषाय-५अव्रत ३ योग-अने २५ क्रिया ते क्रियाओ अनुक्रमे आ प्रमाणे 2. ( ए रीते ४२ भेद आश्रवतत्वना सामान्यथी कह्या.) विस्तरार्थ:--पूर्वे कहेला पुन्य-शुभकर्म तथा पाप-अशुभ
SR No.002215
Book TitleNavtattva Vistararth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Granth Prakashak Sabha
PublisherJain Granth Prakashak Sabha
Publication Year1923
Total Pages426
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, B000, & B010
File Size7 MB
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