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________________ (१८६) श्री नवतचविस्तरार्थः ॥ नरकत्रिक-नपुंसकवेद-तिर्यंचगति-तिर्यंचानुपूर्वी-एकेन्द्रियादि ४ जाति-५ संघयण अशुभ, ५ अशुभ संस्थान, अशुभविहायोगति दुःस्वर अने नीचगोत्र ए२७पाप प्रकृति विना शेष५५प्रकृति होय, अने जो स्त्यानपित्रिक वर्जे तो ५२ पाप प्रकृतिओ होय. नरकगतिमा ५८-स्थावर-सूक्ष्म-अपर्याप्त-साधारण-५ अशुभसंघयण-४ अशुभसंस्थान-एकेन्द्रियादि ४ जाति--पुरुषवेद-- स्त्रीवेद-तिर्यंचगति-अने तिर्यंचानुपूर्वी ए २१ विना शेष ६१ पाप प्रकृतिओनो उदय होय अथवा स्त्यानर्धित्रिकनो उदय न गणीए तो ५८नो उदय होय, मनुष्यगतिमा ७०--स्थावर-सूक्ष्म-साधारण-एकेन्द्रियादि ४ जाति-तिर्यंचगति-तिर्यंचानुपूर्वी-अने नरकत्रिक ए १२ सिवाय शेष ७० पाप प्रकृतिओ उदयमां होय. तियेचगतिमां ७९-नरकत्रिक विना शेष ७९ पाप प्रकृतिओ होय. एकेन्द्रियमा ६३-दुःस्वर-नरकत्रिक-पुरुषवेद-स्त्रीवेद-दीन्द्रिय-त्रीन्द्रिय-चतुरिन्द्रिय-अशुभविहायोगति-५ अशुभसंघयण-४ हुँडफविनानां अशुभसंस्थान ए १९ विना शेष ६३ पाप प्रकृतिओ होय. द्वीन्द्रियमा ६३–एकेन्द्रियवत्. परन्तु द्वीन्द्रियने स्थाने " एकेन्द्रिय विना" एम कहे. त्रीन्द्रियमा ६३-एकेन्द्रियवत, परन्तु त्रीन्द्रियने स्थाने " एकेन्द्रिय विना" कहेवू. चतुरिन्द्रियमा ६३-एकेन्द्रियवत्. परन्तु चतुरिन्द्रियने स्थाने " एकेन्द्रिय विना" कहे. पंचेन्द्रियमा ७५-एकेन्द्रियादि ४ अशुभजाति, सूक्ष्म, साधारण-अने स्थावर ए ७ पापप्रकृतिओ विना शेष ७५ पापप्रकृ. तिओ उदयमां होय. ॥इति पापतत्वपरिशिष्टम् ॥
SR No.002215
Book TitleNavtattva Vistararth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Granth Prakashak Sabha
PublisherJain Granth Prakashak Sabha
Publication Year1923
Total Pages426
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, B000, & B010
File Size7 MB
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