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________________ - · || पापतत्त्वपरिशिष्टम् ॥ (१८५ ॥ संस्कृतानुवादः स्थावरसूक्ष्मापर्याप्तं साधारणमस्थिरमशुभदुर्भाग्ये । दुःस्वरानादेयायशः, स्थावरदशकं विपर्ययार्थम् ॥ २० ॥ ॥ शब्दाथः ॥ थावर-स्थावर नामकर्म. दुस्सर-दुःस्वर नारकर्ममुहुम-सूक्ष्म नामकर्म अणाइज्ज-अनादेय नामकर्म अपज्ज-अपर्याप्त नामकर्म. अजसं-अपयश नामकर्म. साहारणं-साधारण नामकर्म | थावरदसग-ए स्थावर विगेरे अधिरं-अस्थिर नामकर्म १० कर्म. अशुभ-अशुभ नामकर्म. . विवज्जथ्थ-विपरीत अर्थवालंछे दुभगाणि-दुर्भाग्य नामकर्म. गाथार्थ:-स्थावर नाम०, मूक्ष्मनाम०, अपर्याप्तनाम०, साधारणनाम०. अस्थिरनाम०, अशुभनाम०, दुर्भाग्यनाम०, दुःस्वरनाम०, अनादेयनाम०, अने अपयशनाम०, ए स्थावरदशक कहेवाय अने ते ( त्रसदशकथी) विपरीत अर्थवाळुछे, विस्तरार्थः-ए स्थावर विगैरे १० कर्मना समुदायने स्थावरदशक कहेवामां आवे छे, स्थावरपंचक स्थावरछक्क इत्यादि गण, होय तो स्थावर विगेरे (प्रथमथी ) पांच अने ६ विगेरे गणाय छे, प्रकृतिओ टुंकी रीते गणवा माटे ए दशक इत्यादि संज्ञाओ छे, तेथी अनुक्रमे तेटलीज संख्यावाळी प्रकृतिओ ग्रहण कराय छे, ए १० कर्मना अर्थ पूर्व गाथामां कहेवायो छे, ॥पापतत्त्वपरिशिष्टम् ॥ चार गति अने पांच इन्द्रियवाळा जीवोमां कया जीवने केटली पाप प्रकृतिओ (नो उदय ) होय ते कडेवाय छे. देवगतिमा ५५-५२, स्थावर-सूत्र-आपति-साधारण
SR No.002215
Book TitleNavtattva Vistararth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Granth Prakashak Sabha
PublisherJain Granth Prakashak Sabha
Publication Year1923
Total Pages426
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, B000, & B010
File Size7 MB
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