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________________ ॥ पुण्यतत्त्वपञ्चविंशतिभेदवर्णनम् ॥ . (१६७ ) अवतरण-पूर्व गाथामां पुण्यना १७ भेद गणावीने हवे श्रा गाथामा वाकी रहेला पुण्यना २५ भेद गणावे छे. . ॥ मूळ गाथा १६ मी.॥ बन्नचउक्काऽगुरुलहु-परघा उस्सास आयवुजोअं। सुभखगइ निमिण तसदस,सुरनरतिरिआउतित्थयरं॥१६॥ ॥ संस्कृतानुवादः ॥ वर्णचतुष्काऽगुरुलघु-पराधातोच्छ्वासातपोद्योतं । शुभखगतिनिर्माणत्रसदशक-सुरनरतिर्यगायुस्तीर्थकरं॥१६॥ ॥शब्दार्थः ॥ वनचउक्क--(शुभ)वर्ण--गंध--रस सुभखगइ-शुभविहायोगतिनामकर्म ने स्पर्श ए चार. निमिण--निर्माणनामकर्म. अगुरुलहु--अगुरुलघुनामकर्म. तसदस--वस वगेरे १० नामकर्म परघा--पराघातनामकर्म सुर--देवनु आयुष्य. उस्सास--श्वासोच्छ्वासनामकर्म नर--मनुष्यनु आयुष्य. आयव--आतपनामकर्म. तिरिआउ--तिर्यचनु आयुष्य. उज्जोध--उद्योतनाम कर्म. तित्थयरं--तीर्थकरनामकर्म. गाथार्थ:-शुभवर्ण-शुभगंध-शुभरस-शुभस्पर्श-अगुरुलघुनामकर्म-पराघातनामकर्म-श्वासोच्छवासनामकर्म-आतपनामकर्मउद्योतनामकर्म-शुभविहायोगतिनामकर्म-निर्माणनामकर्म-सनामकर्म-बादरनाम०-पर्याप्तनाम० प्रत्येकनाम०--स्थिरन.म०-शुभनाम० -सौभाग्यनाम०-सुस्वरनाम०--आदेयनाम० --यशनाम०-देवायुष्य-- मनुष्यायुष्य--तिबंचायुष्य--अने तीर्थकरनाम० ए सर्व (२५) पुगयना उदयथी प्राप्त थाय छे.
SR No.002215
Book TitleNavtattva Vistararth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Granth Prakashak Sabha
PublisherJain Granth Prakashak Sabha
Publication Year1923
Total Pages426
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, B000, & B010
File Size7 MB
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