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॥ पुण्यतत्त्वसप्तदशमेदवर्णनम्. ॥
(१६३)
३ मनुष्यगति-जे कर्मना उदयवडे मनुष्यपणु प्राप्त थाय ते कर्म तथा मनुष्यपणुं बन्ने पुन्य कहेवाय.
४ ' मनुष्यानुपूर्वी जे कर्मना उदयवडे वक्रगतिए जतो मनुष्यगति वाळो जीव पोताने ज्यां उत्पन्न थq होय त्यां ज जइ शके ते कर्म तथा ते कर्मनो उदय बन्ने पुन्य कहेवाय.
५ देवगति-जे कर्मना उदयथी देवपणु प्राप्त थाय ते.
६ देवानुपूर्वी जे कर्मना उदयथी देवपणामां ज्यां उत्पन्न थq होय तेज क्षेत्रमा जइ देवपणे उत्पन्न थाय ते..
७ पंचेन्द्रियजाति-जे कर्मना उदयथी पंचेन्द्रियपणुं प्राप्त थाय ते कर्म तथा पंचेन्द्रियपणुं बन्ने पुन्य कहेवाय.
८' औदारिकशरीर-जे कर्मना उदयथी औदारिक शरीरनी प्राप्ति थाय ते कर्म तथा शरीर बन्ने पुन्य कहेवाय.
वैक्रियशरीर-जे कर्मना उदयथी वैक्रिय शरीरनीमाप्ति थाय ते कर्म तथा शरीर वन्ने पुन्य कहेवाय. दरेक जीवोना सुखने माटे खेतरो खेडी धान्य उगाडी आप. वां, दरेकने माटे मकानो बांधी आपवां, दरेकने परणावी आ. पवां अने दरेक जीवो जेमां जेमां पोते सुख मानता होय तेवां तेवां साधन तेओने बनावी आपवां तो पछी पापनु कार्य ज क बाकी रह्यं ? माटे ए मान्यता अज्ञानसूचक छे, परन्तु तरस्यो जीव अथवा व्याकुळ थयेलो जीव आपणी पासे आग्यो होग तो आपणे करुणाभावथी तेने पाणी अने अन्न आपी शान्त करवो ए फरज छे. आ संबन्धमां घणो त. कवाद धर्ममार्गने बाध न पहोंचे तेम विचारवगे.
१ ऋजुगतिण ( सीधी गतिए ) जता जीवने आनुपूर्वीनो उदय नथी पण वक्रगतिए जता जीवने जे ठेकाणेथी वळ. वार्नु आवे ते ठेकाणे जे कर्म जीवने बळदने नाथनी पेठे वाकी आपे ते वाळनार कर्मनुं नाम आनुपर्वी कहेवाय छे.