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॥श्री नवतत्त्वविस्तरार्थः॥
तीर्थकरादि दीक्षा लेनार जीवोनी पेठे) गमे ते जीवने दान आपे तो पण ' पुण्य बंधाय ए सर्व विगत पात्रत्वने अपेक्षीने कही शेष भेद सुगम छे. ____ हवे ते बंधायलु पुण्य कये कये प्रकारे उदय आवे छे-भोगवाय छे ? तेज ४२ प्रकारे पुण्य भोगववानो संबन्ध गाथामां कह्यो छे. ते आ प्रमाणे
१ शातावेदनीय-जे कर्मना उदयथी सुखनो अनुभव थाय ते कर्म तथा ते सुखनो अनुभव बन्ने पुण्यमां कहेवाय.
- उच्चगोत्र-जे कर्मना उदयथी उच्चकुळ-जाति-धन-ठकुराइ इत्यादि प्राप्त थाय ते कर्म तथा उच्चकुल वगेरे सर्व पुण्य कडेवाय.
१ प्रसंगे ए पण ख्याल रहेवो जोइए के--
१ श्वान-कबूतर-वगेरे जीवोने अन्नादिक आपवाथी तथा जीवितदान आपवाथी पण पुण्य बन्धाय छे. कारणके तेमां करुणा भावथीज पुण्य बन्धाय छे
२ घेर आवेला ब्राह्मण-बावा-जोगी-संन्यासी विगेरे के जेओ सत्यधर्मथी विमुख छे तेओने “आ पण धर्मी जीवो डे' अथवा " आपणे एमने आपीशुं तो धर्म थशे पुण्य थशे " ए. वी बुद्धिथी आप नहि. पण श्रावकनां अभंगहार होवाथी कोइपण बारणे आवेलो जीव सवथा निराश थइ पाछो न जाय अने जाय तो मारो धर्म जगतमा हलको गणाय, अथवा "मारो दाक्षिण्य गुण न गणाय" एम विचारीने अवश्य आपवं. जोइए कारणके एथी पोतानो दान गुण प्रगटे. धर्म मारो गणाय. अने अन्य जीवो पण धर्माभिमुखी थाय.
३ केटलाएक जीवो कृवा वाव- तलाव- खोदाववामां ने सदाव्रत बंधाववामां पुण्य माने छ कारणके घणा जीवी नं. थी पोत.ना आन्मानी शान्ति करे ले, तथा बनादिकमां दव मूकी ढोरने चरवाना क्षेत्र बनाववामां इत्यादि अनेक कार्यमां पुण्य माने छे, परन्तु ते अज्ञानता छे, एम स्पष्ट रीतं श्री यांगशास्त्रमा को छे, अने जो एबी रीते पुण्य बंधा होय तो