________________
( १६४ )
॥ नवतश्व विस्तरार्थः ॥
१० ३ आहारक — जे कर्मना उदयथी आहारकशरीरनी प्रा. प्ति थाय ते कर्म तथा शरीर बन्ने पुन्य कहेवाय.
४
११ तेजस - जे कर्मना उदयथी तेजस शरीरनी प्राप्ति थायते कर्म तथा शरीर बन्ने पुन्य कहेवाय.
१२ ५ कार्मण -- जे कर्मना उदयथी कार्मण शरीरनी प्राप्ति थाय ते कर्म तथा का० शरीर बन्ने पुन्य कहेवाय.
$
१३ औदा० उपांग- जे कर्मना उदयथी औदा० शरीरने आंख - नाक-कान- इत्यादि अवयवो प्राप्त थाय छे ते. ( अहिं अवयव विनानुं पण औदा० शरीर एकेन्द्रिय जीवोने होय छे. माटे अवयवोनी प्राप्ति पुण्यरूपे जाणवी. ).
१४ वैक्रियउपांग- जे कर्मना उदद्यथी बै० शरीरने अवयवो ( आंख - नाक-कान-आंगळीओ ) इत्यादि प्राप्त थाय ते. (अहिं वायुकायना बै० शरीर ने अवयवो होता नथी ने देवादिकने होय छे माटे पुण्यप्रकृतिरूप छे ).
१५ आहारक उपांग- जे कर्मना उदयवडे आहा० शरीरने अवयवोनी प्राप्ति थाय ते ( अहिं कोईपण आहा०शरीर अब यत्र विनानुं यतुं नयी पण एकेन्द्रियने जेम अवयव' विनानुं औ१-२-३-४-५ ए पांचे शरीरनु विस्तृत वर्णन ७ मी गाथाना अर्थमां आवी गयुं छे माटे अहिं तो नाम मात्रज दशवेल छे.
६ कार्मण शरीर भवमा भ्रमण करावनार छे छतां पुन्य रूप केम गणाय ? ए संबन्धि समजवानुं एछे के - सर्व पौ द्रलिकसुखो अने दुःखो कार्मण शरीरना प्रभावथी छे, परन्तु पौगलिकसुखमां कार्म० शरीरनी मुख्यता गणीने पुन्यप्रकृति मां गणेल छे..
१ शंका वनस्पतिने शाखा प्रशाखा पुष्प - फळ इत्यादि अनेक अवयव छतां एकेन्द्रियनुं औदा०शरीर उपांगरहित केम काय ?