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________________ ( १५२ ) || श्री नवतत्रविस्तरार्थः ॥ जो अकारण तरीके मानीभुं तो पुनः ते पुद्गल जीवने उपकारी होवाथी जीवना संबन्धमां कारण थाय छे ए प्रमाणे एक द्रव्यना संबन्धे अकारण अने वीजा द्रव्यना संबन्धे कारणपशुं मानतां व्यवस्था त्रुटी जती होवाथी एक द्रव्यमां एकज द्वार घटे तेवी रीते विचारg. माटे जीवद्रव्य कोइनुं उपकारी नथी अने जीवद्रव्यने बीजां द्रव्य उपकारी है ए हेतुथी जीवद्रव्य ज अकारण छे, ने शेष कारण छे. शंका-- जीवद्रव्य शुं कोड़ने पण उपकारी नथी ? उत्तर - जीवद्रव्य जीवद्रव्यने ' परस्पर उपकारी छे, परन्तु कारणादि द्वार पर द्रव्य प्रत्ययिक होवाथी स्वद्रव्य प्रत्यय २ ३ विरोधकारक नथी. ॥ ६ द्रव्यां कर्त्ता ने र्त्ता कोण? | जे द्रव्य अन्य द्रव्यनी क्रिया प्रत्ये अधिकारी होय ( स्वामी होय ) ते कर्त्ता, अने जे अन्य द्रव्यनी क्रिया प्रत्ये अधिकारी (स्वामी) न होय ते अकर्त्ता कहेवाय. अहिं " कर्त्ता एटले क्रियानो करनार " ए सामान्य अर्थने अनुसारे तो छ ए द्रव्य कर्त्ता हो शके, परन्तु कर्त्ता एटले सर्व द्रव्यनो अधिकारी (पोतेज उपभोग करनार होवाथी स्वामी ) " एवो अर्थ ग्रहण करवो योम्य छे. त्यां धर्मास्तिकायादि सर्व द्रव्योनी गतिसहायकादि क्रियाओनो उपभोग करवामां अधिकारी जीव द्रव्य छे माटे जीव द्रव्य कर्त्ता अने शेष ५ द्रव्य अकर्त्ता छे. अहिं पुद्गल धर्मा० दिaat क्रियानो उपभोगी छे तो पण पुनः पुद्गलनो उपभोगी १ परस्परोपग्रहो जीवानाम् ( तत्वा०५-२१ ) २ कारणादि द्वार परद्वव्यनी अपेक्षाए वीचारवाना होवाथी ३ जो द्रव्य पोते पोतानु उपकारी होय तो तेवा पोता नुं उपकारादि निमित्त विरोध कारक नथी.
SR No.002215
Book TitleNavtattva Vistararth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Granth Prakashak Sabha
PublisherJain Granth Prakashak Sabha
Publication Year1923
Total Pages426
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, B000, & B010
File Size7 MB
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