SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 204
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ || सप्रवेश्यप्रवेशिवर्णनम् ॥ (१५३) जीवथी छे, माटे पुद्गलने कर्ता कहेवामां सांकर्य दोष आवतो होवाथी पुद्गल ६ द्रव्यना 'सामुदायिक संबन्धमां अकर्ता गणाय. ॥६ द्रव्यमा सर्वव्यापी अने देशव्यापी कोण ? ॥ जे द्रव्य सर्व जग्याए रहेलं होय ते सर्वगत अथवा सर्वव्यापी, अने जे द्रव्य अमुक ( थोडी) जग्यामां रहेलं होय ते असर्वगत अथवा देशव्यापी कहेवाय, त्यां आकाश द्रव्य अनंतानंत योजनप्रमाण लोकालोकव्याप्त होवाथी सर्वव्यापी, अने धर्मास्तिकायादि ४ द्रव्य लोकाफाश जेटली (१४ राजलोक प्रमाण-असंख्य योजन जेटली ) जग्यामां रहेल होवाथी, अने काळद्रव्य अढीद्वीप मात्र व्याप्न होवाथी देशव्यापी छे, ॥६ द्रव्यमां सप्रवेशीयने अप्रवेशी कोण? ॥ एक द्रव्य बोजा द्रव्यरूपे थइ जq ते प्रवेश कहेवाय, अने एवां बीजा द्रव्यरूपे थइ जनार जे द्रव्य ते सप्रवेशी कहेवाय, अने जे द्रव्य अन्यद्रव्य रूपे न थतां स्वरूपे ज कायम रहे ते अप्रवेशी कहेवाय. त्यां कोइपण द्रव्य बीजा द्रव्य रूपे थतुं नथी, जोसर्व द्रव्यो एकज जग्यामां परस्पर संक्रमीने रह्यां छे. पण धर्मास्तिकाय ते अधर्मास्तिकायादि थतुं नथी. जीवद्रव्य पुद्गल पणे परिणमतुं नथी ए प्रमाणे कोइ द्रव्य कोइ पण अन्य द्रव्यपणे परिणमतं नहिं होवाथी सर्वे द्रव्य अप्रवेशो छ पण सप्रवेशी कोइ - १ अहिं कारण अने कर्ता विगेरे केटलां द्वारो ६ द्रव्यना समुदाय संबंधथीज विचारेलां छे, अने जो प्रत्येक द्रव्यमां अ. लग अलग कारणादि द्रव्य विचारीए तो कोइ द्रव्यमां बन्ने द्वार लागु पडी जाय छे. जेम पुद्गल द्रव्य धर्मा० विगेरेनी अपे. क्षाए कर्ता, अने जीवनी अपेक्षाए अकर्ता. इत्यादि अव्यवस्था थती होवाथी समुदाय संबंध विचारवो योग्य छ,
SR No.002215
Book TitleNavtattva Vistararth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Granth Prakashak Sabha
PublisherJain Granth Prakashak Sabha
Publication Year1923
Total Pages426
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, B000, & B010
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy