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________________ ॥ अजीवतत्त्वे पुद्गललक्षणस्वरूपवर्णनम् ॥ (१३१) पीत-पीलो, अने श्वत-धोळो एम पांच प्रकारे छ. बीजा वादळीउदो-गुलाबी-इत्यादि रंग ए पांच मूळ रंगमांथी अमुक अमुक रंगना मीश्रणथी उत्पन्न थाय छे. माटे ए पांच सिवायना बीजा वण सर्व सान्निपातिक वर्ण जाणवा. वर्तमान विज्ञानीओ लाल-पीलो-अने वादळी ए त्रण प्रकारना मूळ वर्ण, अने बीना बधा मिश्रवण छे एम कहे छे, परन्तु सर्वज्ञोक्त मूळ वर्ण पांच छे, ए कृष्णादिवणे प्रत्येक एक गुण कृष्ण ( एक अंश काळो), द्विगुण कृष्ण (बे अंशकालो ), संख्यगुण कृष्ण असंख्यगुणकृष्ण अने अनन्त गुणकृष्ण इत्यादि तारतम्यभेदे अनन्त प्रकारना छे. तथा ए कृष्णा दिवर्ण परमाणु पुद्गलमां होय छे, त्यां एक परमाणुमां प्रगटपणे ए. कजवर्ण होय, अने सत्तापणे पांचवर्ण होय. पुनः जे परमाणु कृष्णवर्ण छे परमाणुनो कृष्णवर्ण पलटाइने रक्तादि कोइपग वर्ण (जघन्यथी १ समयमां अने उत्कृष्टथी असंख्य समयमां ) उत्पन्न थाय, ए प्रमाणे एक परमाणुमां पांचवर्ण अनुक्रमे पलटाइ पलटाइने आविर्भाव तिरोभावने ( प्रगटता अने प्रच्छन्नता) पामे छ. पुनः र कृष्णादि कोइएण वर्ण धर्मास्तिकायादि कोइपण द्रव्यमा होतो नथी परन्तु मात्र पुद्गलद्रव्यमांज होय छै माटे (चक्षुइन्द्रियना वि.. स्वाभाविक परमाणुओ प्रत्येकवर्णवाला छे अने ते प. रमाणुओ अतिशयज्ञानिओये दरेकमां भिन्न काले तथा अनेक मां समकाले पांचवर्णो देख्या छे. अने तेनाथी बनेला स्कन्धो जो एकेक वर्णनी प्रधानता होयतो व्यवहारे कृष्णादि एक व. र्णवाला अने अनेक वर्णोनी प्रधानता होयतो व्यवहारे चित्रादिवर्णवाला देखाय छे, पण निश्चयदृष्टिये अनन्तप्रदेशी स्कन्धो पांचे वर्णवाला होय छे. तेमज स्वभाविकपुद्गलोमां पांचन वर्ण छ बाकी कृत्रिम बनता वर्णाना अनेक भांगाओ पडे छे. नेया. यिक-वैशेषिक-बौद्ध समाम दर्शनकारो कृष्ण-शुक्ल-नील वर्णों ने निर्विवादपणे स्वीकारेछे वादळी ए कोइ भिन्नवर्ण नथी कृष्णनीज अमुक गुण तरतमताए वादळीपणे प्रतीति थाय छे लालपोळाना संयोगथी थता वर्णो मूलवर्ण जेवा कदापि बनी शकेज नहो एसर्व विचारथी वर्ण पांचज छे ते सिद्ध छे.
SR No.002215
Book TitleNavtattva Vistararth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Granth Prakashak Sabha
PublisherJain Granth Prakashak Sabha
Publication Year1923
Total Pages426
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, B000, & B010
File Size7 MB
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