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॥ अजीवतत्त्वे पुद्गलस्वरूपवर्णनम् ॥ (१२९) चंद्र-ग्रह-नक्षत्र-तारा-रत्न-आगीआ इत्यादिपदार्थोना तथा जीवोना शीतप्रकाश ते सर्व उद्योत कहेवाय छे, अने अनीनो उष्ण प्रकाश छे. तेथी “उद्योतमां" न गणी शकाय. ए उद्योत प्रकाश चंद्रादिकना विमानमांथी विमाननो प्रतिसमय निकलतो पुद्गलप्रवाह छे, जेम वर्तमानसमयमा ग्यासलाइट अने विजळी वगेरेना तेजनो परमाणुप्रवाह प्रत्यक्ष देखाय छे, तेम चंद्रादिकनो प्रकाशरूप परमाणुप्रवाह पण कंडक अव्यक्त छेतोपण किरणरूपे प्रत्यक्ष देखाय छे, अने प्रत्यक्ष देखातो होवाथी ते प्रकाश पुद्गलरूपज छे, अहिं सूर्यनोप्रकाश उद्योतना अर्थमां लीधो नथीं तेनुं कारणके ते आगळ " आतप" शब्दथी कहेवाशे.
॥प्रभा.॥ चंद्रादिकना अने सूर्यना प्रकाश किरणोमांथी निकलतोजे बीजो उपप्रकाश ते प्रभा कहेवाय, के जेनाथी अप्रकाशितस्थानमा रहेल घटादिपदार्थों पण देखी शकाय छे, अने ए प्रभा ते पण प्रकाश पुद्गलोमांथी विरल विरलपणे ( आछो-आछो ) वहेतो प्रकाश प्रबाह छे, परन्तु साक्षात् प्रकाशरूप नहिं होवाथी ए अव्यक्त प्रकाशने प्रभा शब्दथी ओळखी शकाय छे, प्रकाशमांथी विरल विरल पणे जो प्रभारूप पुद्गल प्रवाह न वहेतो होय तो प्रकाश पासे रहेला घटादिपदार्थों पण न देखी शकाय, जेथी सूर्यादिकनो किरणप्रकाअ ज्यां नथी पडतो तेवा घर विगेरे स्थानोमां रात्रिज होय, माटे प्रकाशमांथी पण बीजो उपप्रकाश वहे छे के जेथी घरमांपण अजवार्छ । पडे छे. ने उपप्रकाशन नाम प्रभा छे, पुनः अग्निना मूळ तेजने ५ण उपलक्षणथी प्रभामां अन्तर्गत गणवू एम संभवे छे.
॥छाया. ॥ प्रकाशमां, दर्पणमां, जळ वगेरे निर्मळ चीजोमां पडतुं पदार्थ