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________________ (१२८) ॥नवतत्त्व विस्तरार्थः॥ बादर परिणामी पुद्गलस्कंधमांथी नथापकारना जीव प्रयत्नवडे अथवा स्वभावतः ( ते अष्टस्पर्शी 'स्कंधमां कोइ विकार थवाथी) तदन्तर्वर्ती ( ते स्कंधावगाही ) भाषावर्गणायोग्य पुद्गलो शब्दपणे परिणमीने उछले छे, अने ते भाषावर्गणा चतुःस्पर्शी छे. पुनः ए शब्दनी उत्पत्ति जीव औदा०-वैक्रिय-ने आहा. ए. : त्रणदे. हद्वारा करे छे, परन्तु तैजस अने कार्मणादि कोइपण स्कंधमांथी शब्दोत्पत्ति थती नथी, पुनः जे पत्थरादि अजीव पदार्थमांथी शब्दोत्पत्ति थाय छे ते पण निर्जीव औदारिक देहथीज जाणवी ____ अहिं नैयायिको शब्दनी उत्पत्ति आकाशद्रव्यथी माने छे ते युक्तिपूर्वक नथी, कारणके अरूपी आकाशमांथी ' रूपी शब्दनी उत्पत्तिनो असंभव छे. माटे शब्द ए आकाशनो गुण नहिं पण पुद्गलनो परिणाम छे. पुनः शब्द जो पुद्गल पदार्थ न होय तो मूळ शब्द कूवामां भोयरामां के गुफा वगेरेमां अथडाइने तेनो प्रतिशभ-पडयो केम वागे ? माटे शब्दनो पडयो पडवाथी पण शब्द पु. द्गल परमाणुनो समुदाय छे, एम अनुमान थाय छे. ॥ अंधकार. ॥ - अंधकार ए पण पुद्गलनो विकार छ, अर्थात पुद्गलरूप छे. अन्यदर्शन [नैयायिकादि] अंधकारने पदार्थ रूप मानता नथी, पण "तेजनो अभाव ते अंधकार" एम माने छे. परन्तु जे चक्षुदृश्य कृष्णवर्णरूप जे अंधकार ते पुद्गलज. ॥ उद्योत.॥ . श्री विशेषावश्यकादिकमां त्रण देहथी भाषानी उत्प. त्ति प्रगट रीते कही छे, २ ७ मी गाथामां वचन प्राणना वर्णन .प्रसंगे शब्दन रूपी पणु स्फुटनोटमां दर्शावेलं छे.
SR No.002215
Book TitleNavtattva Vistararth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Granth Prakashak Sabha
PublisherJain Granth Prakashak Sabha
Publication Year1923
Total Pages426
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, B000, & B010
File Size7 MB
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