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________________ ( १२६) ॥ श्री नवतच्चविस्तरार्थः ॥ ५ अंश स्निग्ध परमाणु साथे ७ अंश स्निग्ध अथवा रुक्ष परमाणुनो संबन्ध थाय, (द्वयधिकादिगुणानां तु' इति तत्वा० वचनात् ). ए प्रमाणे शेष सर्वपुग़लस्कंधोनी उत्पत्ति जाणवी, अने स्कंधनो उ. त्पत्ति थतां तेना देशादि ( देश-अने प्रदेश ) नी उत्पत्ति तो सापेक्ष होवाथी सहज छे, पुनः ए संबन्धी केटलुक विवेचन अजीवना १४ भेदवाळी धम्माऽधम्माऽऽगासाए गाथाना विस्तरार्थमां कहेवाइ गयुं छे ने वधु जिज्ञासुए ग्रन्थान्तरथी जाणवं. अवतरण--पूर्वगाथामां पुद्गलना ४ प्रकार कहीने हवे आ गाथामां पुद्गलनां लक्षण (स्वभाव-धर्म-गुण)कया कया? ते दर्शावे छे ॥ मूळ गाथा ११ मी ॥ सबंधयारउज्जोअ, पभाछायातवेहि आ। वण्ण गंध रसा फासा पुग्गलाणं तु लक्खणं ॥११॥ ॥ संस्कृतानुवादः ॥ शब्दान्धकारावुद्योतः, प्रभाछायातपैश्च । वर्णों गंधो रसः स्पर्शः, पुद्गलानां तु लक्षणं ।। ११ ।। ॥ शब्दार्थः ॥ सद्द-शब्द वण्ण--वर्ण (रंग) अंधयार-अंधकार उज्जोध-उद्योत रसा-रस पभा-प्रभा फासा-स्पर्श छाया-छाया पुग्गलाणं-पुद्गलोनां आतवेहि-आतप ( तडका )वडे तु-वळी आ-अने | लक्खणं-लक्षण(स्वभाव) धर्म-गुण गथार्थः-शब्द, अन्धकार, चंद्रादिकनो ठंडो प्रकाश, प्रभा गंध-गंध
SR No.002215
Book TitleNavtattva Vistararth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Granth Prakashak Sabha
PublisherJain Granth Prakashak Sabha
Publication Year1923
Total Pages426
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, B000, & B010
File Size7 MB
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