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॥ श्री नवतच्चविस्तरार्थः ॥
५ अंश स्निग्ध परमाणु साथे ७ अंश स्निग्ध अथवा रुक्ष परमाणुनो संबन्ध थाय, (द्वयधिकादिगुणानां तु' इति तत्वा० वचनात् ). ए प्रमाणे शेष सर्वपुग़लस्कंधोनी उत्पत्ति जाणवी, अने स्कंधनो उ. त्पत्ति थतां तेना देशादि ( देश-अने प्रदेश ) नी उत्पत्ति तो सापेक्ष होवाथी सहज छे, पुनः ए संबन्धी केटलुक विवेचन अजीवना १४ भेदवाळी धम्माऽधम्माऽऽगासाए गाथाना विस्तरार्थमां कहेवाइ गयुं छे ने वधु जिज्ञासुए ग्रन्थान्तरथी जाणवं.
अवतरण--पूर्वगाथामां पुद्गलना ४ प्रकार कहीने हवे आ गाथामां पुद्गलनां लक्षण (स्वभाव-धर्म-गुण)कया कया? ते दर्शावे छे
॥ मूळ गाथा ११ मी ॥ सबंधयारउज्जोअ, पभाछायातवेहि आ। वण्ण गंध रसा फासा पुग्गलाणं तु लक्खणं ॥११॥
॥ संस्कृतानुवादः ॥ शब्दान्धकारावुद्योतः, प्रभाछायातपैश्च । वर्णों गंधो रसः स्पर्शः, पुद्गलानां तु लक्षणं ।। ११ ।।
॥ शब्दार्थः ॥ सद्द-शब्द
वण्ण--वर्ण (रंग) अंधयार-अंधकार उज्जोध-उद्योत
रसा-रस पभा-प्रभा
फासा-स्पर्श छाया-छाया
पुग्गलाणं-पुद्गलोनां आतवेहि-आतप ( तडका )वडे तु-वळी आ-अने
| लक्खणं-लक्षण(स्वभाव) धर्म-गुण गथार्थः-शब्द, अन्धकार, चंद्रादिकनो ठंडो प्रकाश, प्रभा
गंध-गंध