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________________ ॥ अजीवतत्त्व पुद्गलद्रव्यविवचनम् ॥ (१२५) विस्तरार्थ:-पुद्गलने अने जीवोने तथा अध्याहारथी धर्मा० अधर्मा ने अवकाश (जग्या) आपवानो स्वभाव आकाश द्रव्यनो छ. ए आकाशद्रव्यना अभाव धर्मास्तिकायादिनु अवस्थान अशक्य छे. इत्यादि विशेष वर्णन गतगाथाना विवेचनमां आवी गयु छे. तथा पुद्गलद्रव्यना स्कंध-देश-प्रदेश-अने परमाणु ए चार भेद के. जे प्रथम विस्तरार्थमां कहेवाइ गया छे, अने शेष धर्मास्तिकायादिना त्रण प्रण भेद तथा काळनो एक भेद गाथाद्वारा कहेलो छ, जेथी सर्व मली अजीवना १४ भेद संपूर्ण थया. __शंका-कया द्रव्यनो कयो स्वभाव ? ते कहेवाने प्रारंभ करतां त्रण व्यना स्वभाव कह्या अने अत्रे पुद्गल द्रव्यनो स्वभाव कहेवानो प्रसंग के छतां पुद्गलना भेद केम कह्या? उत्तर-पुद्गलनो स्वभाव स इंधयारउज्जोए गाथामां आगळज कहेवानो छ, अने ते शब्दादि पुद्गलस्वभावो स्कंध रूप छ अने पुद्गलतो वास्तविकरीते परमाणु रूप छे, तेथी परमाणुरूप पुद्गलना स्कंधरूप शब्दादि स्वभाव केम होइ शके ? ए शंकानो अवकाश टालयाने अर्थे आ गाथामां पुद्गलना चार भेद कहेवावडे कंध देश प्रदेश अने परमाणु ए चारे पुद्गल प्रकारज छ एम जणाव्यु. ने योग्य है. ए पुद्गल द्रव्य मात्र लोकाकाशमांज सर्वत्र रहेल छे, पुनः पु. द्गलना स्कंधो दिप्रदेशीथी मांडीने अनंतप्रदेशी सुधीना स्कंधों १४ राजलोकमां सवत्र छे. त्या पुद्गलनो जघन्य स्कंध बे परमा नो मलीन बने छे. स्कंध बनवानुं मुख्य कारण परमाणुमा रहेलो स्निग्धता अने रक्षता छे, (स्निग्धरुक्षत्वाद्वन्धः' इति तत्वा० वचनात ). ते स्निग्धता अने रुक्षता पण परस्पर वे विगैरे अंश जेटली अधिक होय ताज में परमाणुनो परस्पर संबन्ध शाय छे. जेमक
SR No.002215
Book TitleNavtattva Vistararth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Granth Prakashak Sabha
PublisherJain Granth Prakashak Sabha
Publication Year1923
Total Pages426
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, B000, & B010
File Size7 MB
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