________________
(११८) ॥ श्री नवतत्त्वविस्तरार्थः॥ छ, अने एक आकाश प्रदेशमा अवगाही ( समाइ ) रहे छे. एवा दस बार पंदर पचीस सो हजार लाख के अवज सूक्ष्म परमाणुओं भेगा मळे तो पण दृष्टिगोचर थाय नहिं, एथी पण वधु संख्यात के असंख्यात--अनन्त परमाणुओ भेगां मळतां पण दृष्टिगोचर थाय नहिं परन्तु ज्यारे अमुक प्रमाणमां घणा अनंत बादर परिणामी परमाणु भेगा मळे तोज दृष्टिगोचर थइ शके एवा अतिसूक्ष्म परमाणु होय छे. जाळीआना तेजमां उडता रजकणमां, अने एक वालाग्रमां पण अनंत परमाणुओ रहेला छे. इत्यादि परमाणुन विस्तृत स्वरूप ग्रन्थान्तरथी जाणवा योग्य छे.
१ पर्वत-जळ-अग्नि इत्यादिवडे परमाणु अप्रतिघाती छे परन्तु ३ प्रकारे प्रतिघाती पण छे. त्यां विमात्रस्निग्धरुक्षत्वबडे परमाणुनो अन्य परमाणु साथे संबंध थवाथी बन्धनपरिणामप्रतिघाती, अलोकमां धर्मास्तिकाय नहिं होवाना कारणे लोकान्तथी आगळ धर्मास्तिकायनो. उपकार परमाणु उपर नहिं होवाथी परमाणु लोकने अन्ते जइ हणाय छे-अथडाय छे तेथी उपकाराभावप्रतिघाती, अने वेगथी ( विस्रसा परिणामे ) गति करता परमाणुने वेगवाळी गति. वडे सामो आवतो बीजी प. रमाणु अटकावे छे, ए हेतुथी परमाणु वेगप्रतिघाती छे. (ए. ३ प्रकारनो प्रतिघात तत्त्वार्थना ५ मा अध्यायना २६ मा सू. वनी वृत्तिमां कंह्यो छे. ) माटे एकज परमाणुमा प्रतिघातित्व, अने अप्रतिघातित्व बन्ने वर्ते छे तो पण स्थूळ नयथी परमाणु अप्रतिघाती कहेवाय. जेम शब्दादि पुद्गलो सामान्यपणे अप्रतिघाती होते छते वायु इत्यादिवडे प्रतिघात प्रत्यक्ष उपलब्ध थाय छे. तेम अपतिमाती एग्माणमा ए ३ कारे पनि पात संभवे रे. पुतः ने द्रयो अप्रतिघाती कद्यां ते ते एका न्ते अप्रतिघातीज एम नहिं परन्तु अमुक अमुक अपेक्षाए ते. ओमां प्रतिघात पण संभवे.
* बादर परिणामी स्कंधोज घणा अनंतप्रमाणमां एकटा