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________________ || अजीव कन्यादिसंवेधवर्णनम् || ॥ कया द्रव्या स्कंधादि भेद केलां ? | ( ११९ ) धर्मास्ति० (स्कंध ) - एक छे. धर्मास्ति० देश -- असंख्य छे. ( दरेक विभाग एकेक प्रदेश न्यून कल्पवाथी वे न्यून स्वप्रदेश संख्या प्रमाण. ) धर्मास्ति० प्रदेश - असंख्य छे, ने धर्मा० देशनी संख्याथी वे अधिक अधर्मास्ति (स्कंध ) - एक छे. अधर्मास्ति० देश- असंख्य छे. (२ न्यून स्वप्रदेश संख्या प्रमाण. ) अधर्मास्ति० प्रदेश - असंख्य है, ने अवर्मा० देशनी संख्याथी अधिक छे. आकाशास्ति० (स्कंध ) - एक है. आकाशास्ति० देश- अनंत ले. (२ न्यून स्वप्रदेश संख्या प्रमाण . ) आकाशास्ति० प्रदेश - अनंत है, ने आकाशा० देशनी संख्याथी वे अधिक है. जीवास्तिकाय ( स्कंध ) - अनंत छे ( जीव द्रव्य अनंत होवाथी. ) जीवास्तिकाय देश - एक जीवना देश ( बे न्यून स्वप्रदेश संख्या प्रमाण ) असंख्य, अने सर्व जीवना देश थाय तो दृष्टिगोचर थाय, अने सुक्ष्मपरिणामी स्कंधो तो गमे तेटली उत्कृष्ट संख्याए एकठा थाय अने चौदराजलोक जेवडुं कद थाय. तोपण दृष्टिगोचर न थाय. माटे परमाणुओं परमाणु अवस्थामां तो न सूक्ष्मपरिणामी के न बादर परिणामी छे, पण ज्यारे स्कंधरूपे परिणमे छे त्यारेज पूर्वोक्त बे रोते परिणमे छे, एम जाणवुं. १ धर्मा०दिष्टमां स्कन्ध व्यपदेशकल्पितले. वास्तविक नही. २ जेम पूर्वे १० प्रदेशी स्कंधना ८ देश विभाग या प्रमाणे
SR No.002215
Book TitleNavtattva Vistararth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Granth Prakashak Sabha
PublisherJain Granth Prakashak Sabha
Publication Year1923
Total Pages426
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, B000, & B010
File Size7 MB
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