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________________ ( ११६ ) ॥ श्री नवतस्वविस्तरार्थः ॥ स्तिकायना असंख्य अणुओ पिंडित थइने स्कंधरूपे अनादिकाळथी. परिणमेला होवाथी धर्मा०ना सर्व अणुओ ( प्रत्येक अणु ) धर्मा० नो प्रदेश कहेवाय छे. ए प्रमाणे अधर्मा० प्रदेश, 'आकाशा प्रदेश अने जोवप्रदेश पण कहेवाय के. तथा विदेशी स्कंधथो अनंत 'प्रदेशी पुल रोमां लागेला सर्व अणु (परमाणु) पुद्गल प्रदेश कहेवाय छे. ॥ परमाणु ॥ स्कंधने नहिं वळगेको एवो जे छटो अणु ते परमाणु कहेवाय. ''परम' उत्कृष्ट, 'अणु' - अणु ते परमाणु त्यां धर्मास्तिकायना सर्व अ ga riani वळला होवाथी धर्मास्तिकायनो परमाणु नथी, अने तेबीज रीते अथर्मा वगेरे ३ द्रव्यना ( अधर्मा० - आकाशअने जीव द्रव्यना) अणुओ पण अनादि अनन्त काळ सुधी स्कंधमां वळला होवाथी ए ३ द्रव्यना परमाणु नथी. अने पुद्गल द्रव्य तो वास्तविक रीते परमाणु छे. अने स्कंन, देश, अने प्रदेश ए तो पुद्गल परमाणुना विकाररूप छे, कारणके ६ द्रव्यमां जीव अने पु द्रव्य विभावस्वभावी छे, त्यां जीवना देवत्व नरत्वादि अने पुलना स्वादि विभावस्वभाव है, माटे तची तो परमाणु एज पुल छे, अने स्कंधादि तो उपचारथी ( व्यवहारथी ) पुनलव्यपदेशवाळा छे. प्रश्नः - ६ द्रव्यमां धर्मास्तिकायादि द्रव्यना स्कंध देश अने देश गया अने काळद्रव्यना कंवादिनी गणत्री केम न करी ? १. पर्मा० अधम अने एक जीवना प्रदेश सरखी संख्याए असंख्यात ले. माटे प्रत्येकना असंख्य असंख्य प्रदेश जाणवा अने आकाश द्रव्य अनंत प्रदेशी होवाथी आकाशना प्रदेश अनंन जाएगा.
SR No.002215
Book TitleNavtattva Vistararth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Granth Prakashak Sabha
PublisherJain Granth Prakashak Sabha
Publication Year1923
Total Pages426
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, B000, & B010
File Size7 MB
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