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॥ अजीवतत्त्वेदेशप्रदेशवर्णनम् ॥
(११५.),
धर्मास्तिकाय जो के अखंड द्रव्य छे, एनो विभाग जुदो पड़ी शकतो नथो तो पण संपूर्ण धर्मास्ति नी अपेक्षाए एक प्रदेश न्यूनधर्मा०, द्विपदेशन्यून धर्मा० यावत् द्विपदेशीधर्मा० सुधीना असंख्य विभागो कल्पी शकाय छे, ए हेतुथी प्रतिबद्ध देशनी अपेक्षाए धमास्तिकाय ' देश कही शकाय छे. ए प्रमाणे अधर्मा० देश-आ. काशा० देश.--अने ( आ अजीव प्रकरणमा अनुपयोगी छे तो पण ) जोव देश पण धर्मा० देशवत् जाणवा. तथा अनादि अनंत पुद्गल स्कंधो [ मेरु -शाश्वतमंदिर--शाश्वत प्रतिमा वगेरे ] पण प्रतिबद्धदेश वाळा छे, अने शेष अशाश्वत ( क्षणभंगुरबिनाशी) पुद्गलस्कंधो प्रतिबद्धदेश तथा अप्रतिबद्धदेश बाळा जाणवा. कारणके विभाग धर्मयुक्त पुद्गल स्कंधमाथी पण ज्यां सुधी विभाग जुदो नथी थयो ते दरम्यानमां पण धर्मास्ति० देशवत् देश पणानी कल्पना थइ शके छे. वास्तविकदेश व्यपदेश स्कंधमा बुद्धिथी कल्पि त विभागने मानवो तेज उचित छे.
.प्रदेश, स्कंधमा लागेलो जे परमाणु ते प्रदेश कहेवाय. प्र० उत्कृष्ट देश--विभाग ते प्रदेश. अर्थात् अति उत्कृष्ट विभाग ते प्रदेश, कारणके प्रदेशथी परमन्यून विभाग कोइ पण नथी. छेल्लामा छेल्लो विभाग तेज प्रदेश छे. पुनः प्रदेश करतां नानो विभाग आ जगतमा कोइ नथी. ए हेतुथी अतिनानामां नाना विभाग ते प्रदेश कहेवाय, के जे विभाग एक परमाणु मात्र कदनोज छे. त्यां धर्मा
जेम आकाश द्रव्य अखंड होते पण घटाकाश पटा. काश इत्यादि खंड आकाशनो व्यपदेश थाय छे, तेम अत्र प. ण धर्मास्तिकाय अखंड द्रव्यनो घटधर्मास्तिकाय व्यपदेश थ. र शके ने ते घटधर्मास्तिकाय सं धर्मास्ति नो देश कहेवाय,