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॥ अजीवतत्वेऽधर्माकाशास्तिकायवर्णनम् ॥
(१०७)
पकारी के एम केम कहेवाय ?
उत्तर--धर्माऽस्तिकायादि द्रव्यो अनादि स्वभावेज स्थिर छे, कारणके ते द्रव्योमा कोइपण काळे गतिक्रिया संभवतीज नथी तो पछी तेओने गतिक्रियाथी निवृत्त थवारूप स्थिरता पण कयांथी होय ? के जेथी अधर्मास्तिकाय तेओने उपकार करे ? अर्थात् जेओ स्वभावेज स्थिर छे तेओने स्थिरतामां अन्यद्रव्यनी जरुर नथी, परन्तु जेओने गतिक्रियाथी निवर्तीने स्थिर थq छ तेओनेज अन्य साहाय्यक द्रव्यनी अपेक्षा रहे छे. माटे गति परिणामी जीवपुद्गल ए बे द्रव्यनेज स्थिर थवामां अधर्मा० उपकारी छे. ए द्रव्यना पण धर्माऽस्तिकायना जेटला ( सरखी संख्याए ) असंख्य देशो तथा ( प्रदेशो) छे, अने ते धर्मास्तिकायवत चौदराज जेटला क्षेत्रमा सुप्रतिष्ठाकारे अथवा वैशाखसंस्थाने अवगाही रह्यो छे. .ए धर्मा० अने अधर्मा० बे द्रव्यो जेटला क्षेत्रमा ( आकाशमां ) रह्यां के तेटलाज क्षेत्र नाम लोक एवी संज्ञा छे. जेथी ए वे द्रव्यो लोक प्रमाण अवगाहवाळां कहेवाय छे. वळी ए बन्ने द्रव्यो दधमां माकग्नी पेठे परस्पर प्रवेश करीने रहेलां छे. ॥२॥
॥ आकाशाऽस्तिकाय ॥ धर्मास्तिकायादि द्रव्योने रहेवाने अवकाश ( जग्या) आपनार जे द्रव्य ते आकाशाऽस्तिकाय. आ द्रव्यमां सर्व द्रव्यो व्याप्त थइने जग्या लइने रह्यां छे, जो आ द्रव्य न होय तो धर्मा० आदि द्रव्यो कयां रहे ? माटे मई द्रव्योने अवकाश आपनार आ द्रव्य छ. वळी आ द्रव्यना प्रदेशो अनन्त छे अने ते साथै साथे जोडाइने अनंत जोजन जेटला अपार क्षेत्रमा रह्या छे. वळी आकाशद्रव्य लोकाकाश अलंकाकाश एम के प्रकार छे, त्यां जेटला आकाशमां