________________
(60)
श्री नवतत्व विस्तरार्थः
प्रथम समये आहार ग्रहण करवामां तथा केवलिसमुद्घातमां त्रीजे चोथे पांच समये आत्मप्रदेशनो विकास संकोच करवामां कार्मण शरीर 'उपयोगी छे ( कारणके का० शरीर जीवने परभवमां लड़ जायं छे. )
॥ पांच शरीरोनी उंचाई. ॥
औदा० शरीरमी उंचाई कंक अधिक १००० योजनप्रमाण ( प्रत्येक वनस्पतिना शरीरनी अपेare ) छे. वैक्रियशरीरनी उचाइ चार अंगुल अधिक एक लाखयोजनप्रमाण ( गर्भज मनुष्य कृत बै० शरीरापेक्षाए ) छे. आहारकनी उंचाई १ हाथप्रमाण, अने तैजसकार्मणनी उंचाइ १४ रांज प्रमाण.
|| पांच शरीरनो जघन्य अने उत्कृष्ट काळ. ॥
:
औदा० शरीरनो ज० काळ अन्तर्मुहूर्त्त अने उत्कृष्ट काळ युगलिकनी अपेक्षाए ३ पल्योपम प्रमाण छे, लब्धिप्रत्ययिक उत्तर वैक्रियशरीरनो काळ जय० अन्तर्मुहूर्त्त (बा० प० वायु आदिकना उत्तरवै०नी अपेक्षाए ) अने उत्कृष्ट ४ मुहूर्त ( तिर्य० मनु० नाउत्त२० वै०नी अपेक्षाए ), तथा भवत्ययिक उत्तरबै० देहनो ज०काळ ( नारककृतोत्तरवै०नी अपेक्षाए ) अन्तर्मु० अने उत्कृष्ट ( देवकृत उत्तरवै०नी अपेक्षाए ) पंदर दिवस छे, भवप्रत्ययिक मूळबै० शरीरनो जय० काळ १०००० वर्ष अने उत्कृष्ट काळ ३३
१ कार्मण शरीर वडे सुख दुःख भोगवाय नहि, कर्म बंधाय नहि, कर्म भोगवाय नहि, कर्म निर्जरे नहि, अने तैजसादि चारे शरीर वडे सुख दुःख भोगवाय छे, कर्म निर्जरें छे (-इतिश्री तत्वार्थभाष्यम ), एमां मूळ कारण रूपे तो कार्मण शरीर छे, परन्तु सुख दुःख भोगववा विगेरेमां कारण साधन रूपे कार्मण शरीर नहिं एम जाणं.