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________________ ॥ जीवतत्त्वे कायवळपाणवर्णनम् ॥ (७९) ॥ पांच शरीरनुं व्याप्ति क्षेत्र ( गति क्षेत्र.)॥ औदा० शरीरनी तिर्यगगति १३मा रुचक द्वीपमा रहेला रु. षक पर्वतसुधी छे, ऊर्ध्वगति मेरुना शिखर ( पांडुकवन ) सुधी, अने 'अधोगति कंडक योजन सुधी. (अधोगतिनो विषय शास्त्रमा मालूम पडतो नथी). वैक्रिय शरीरनी तिर्यग्गति असंख्य द्वीप समुद्र सुधी अने ऊर्ध्व तथा अधोगति दरेक जातना स्वामिओगी भिन्न होवाथी कहेवी अशक्य छे, ते शास्त्रान्तरथी जाणवी, तथा आहारक शरीरनी तिर्यग्गति (तीच्छी गति ) महाविदेह सुधी ( लगभग ५० हजार योजन अधिक ) छे; अने ऊर्ध्व अधोगति संभवे नहिं. तथा तैजस कार्मण देहनी गति केवलिसमुद्घात तथा मरणसमुद्घात वडे करीने सर्व दिशाओमां लोकान्त सुधी छे. अहिं शरीरनी गति एटले ते शरीरवाला जीवनी गति जाणवी. ॥ पांच शरीरनो उपयोग. ॥ धर्म-अधर्म--सुख-दुःख- केवलज्ञान-अने मोक्ष उपार्जन करवामां औदा. शरीर उपयोगी छे. विविध प्रकारनां रूप बनाववामां वैक्रिय शरीर उपयोगी छे, जिनेश्वरनी ऋद्धि देखवामां अने मूक्ष्मार्थनो संदेह दूर करवामां आहा० शरीर उपयोगीछे, शत्रुने शाप आपवा अने प्रसादपात्र जीव उपर उपकार-अनुग्रह करवा माटे तेजोलेश्या अने शीतलेश्या मूकवामां तथा आहारवें पाचन करवामां तैनस शरीर उपयोगी छे, अने एक भवथी बीजा भवमा जवामां १ चेडा महाराजने नागकुमार निकायनी दक्षिण श्रेणिना अधिपति धरणेन्द्र स्वभवनमा ला गया हता. २ अधोलोकमां विचरता तीर्थकरो पासे जाय तो त्यां सुधी पण संभवी शके.
SR No.002215
Book TitleNavtattva Vistararth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Granth Prakashak Sabha
PublisherJain Granth Prakashak Sabha
Publication Year1923
Total Pages426
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, B000, & B010
File Size7 MB
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