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________________ (७६) ॥ श्रीनवतत्त्वविस्तरार्थः॥ इ. वधुमां वधु वकता उभो होय त्यांथी लोकना अन्त सुधी छे, अने प्होळाइ वक्ताना मुख जेली लगभग चार आत्मांगुल प्रमाण अने जाडाइ वक्तार्नु मुख बोलती वखते जेट प्होछं थाय तेटली जाणवी. इत्यादि जीवभाषा विशेष स्वरुप विशेषावश्यक विगेरे ग्रन्थोमां प्रगट छे. पुनः अजीवभाषाना तत वितत विगेरे भेदो छे जे आगळ पुद्गल परिणामना स्वरूपमां कहेवाशे. आठमो कायबल प्राण.॥ काय एटले शरीरनो जे व्यापार अथवा शक्ति ते जीवोने कायबल प्राण कहेवायछे, त्यां शरीर औदारिक-वैक्रिय-आहारक-तै जस-अने कार्मण ए प्रमाणे पांच प्रकारनां छे तेनो संक्षिप्त अर्थ आ प्रमाणे-- .. रस-रुधिर-मांस-मेद-मिजा-हाड-अने वीर्य ए सात धातुओनुं बनेलं जे शरीर ते औदारिक शरीर, अथवा औदारिक वर्गणारूप पुद्गलनुं बनेलं जे शरीर ते औदारिकशरीर, अथवा तीर्थकर गणधर चक्रवर्ती वासुदेव विगेरे उदारगुणवाळा महात्माओने पण जे शरीर होयछे ते औदारिकशरीर कहेवाय. १ ॥ विविधप्रकारनी क्रिया करवानी शक्तिवालं जे शरीर ते वैक्रियशरीर, कारणके ए शरीरवाळो जीव खेचर (गगन मार्गे चालनार) थाय, अने भूचर ( जमीनपर चालनार मनुष्यादि रूपे ) थाय, एक थाय अने अनेक पण थाय, मोटो थाय अने नानो पण थाय, हलको थाय अने भारी पण थाय, दृश्य थाय अने अदृश्य पण थाय, एप्रमाणे विविध प्रकारनी क्रियाओ करी शके छे माटे वैक्रिय शरीर कहेवाय, अथवा वैक्रिय नामनी पुद्गलवर्गणानुं बनेल शरीर ते वैक्रिय शरीर कहेवाय. २॥
SR No.002215
Book TitleNavtattva Vistararth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Granth Prakashak Sabha
PublisherJain Granth Prakashak Sabha
Publication Year1923
Total Pages426
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, B000, & B010
File Size7 MB
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