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जीवतत्वे कायवळ प्राणवर्णनम.
( ७७)
तथाविध लब्धिवाळा चौदपूर्वघर मुनिराज श्रीजिनेश्वरनी ऋद्धि देवाने माटे, अथवा सूक्ष्म अर्थनो संदेह दूर करवाने माटे एक हस्वप्रमाण ( आहारक पुगलवर्गणानुं ) ननुं शरीर बनावी विचर - ता तीर्थंकर भगवान पासे मोकले ते आहारक शरीर कहेबाय. ३ ॥
खाघेला आहारने पाचन करवानी शक्तिवाळु अने तेजोलेश्या तथा शीतलेश्याना कारणरूप जे शरीर ते तेजस शरीर कहेवाय. आशरीरना प्रभावे देहमां उष्णता रहे छे. ४ ॥
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मतिज्ञानावरणादि १५८ कर्मप्रकृतिना पिंड रूप जे शरीर ते कार्मणशरीर कहेवाय. पुनः आ शरीर पोताने अने शेष चार शरीरने पण उत्पन्न करवामां भवान्तर जवामां अने प्रथम समये आहारपुद्गलो ग्रहण करवामां कारणरूप छे. ५ ॥
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॥ पांच शरीरमां कारणभेद. ॥
औदारिक शरीर बादर ( स्थूल ) पुद्गलनुं बनेलुं छे. वैक्रियशरीर तेथी सूक्ष्म पुद्गलनुं बनेलं छे, आहारक शरीर तेथी पण सूक्ष्म पुद्गलनुं बोलुं छे, तेथी तैजस सूक्ष्मपुद्गलनं, अने तेथी पण कार्मणशरीर अति सूक्ष्मपुद्गलनुं बनेलुं छे. ॥
॥ पांच शरीरमां प्रदेशसंख्या. ॥
औदा शरीर अतिअल्प परमाणुओतुं बोलुं छे, वैक्रियश रीर तेथी असंख्यगुण परमाणुओनुं, आहारकशरीर तेथी असंख्यगुण परमाणुओनुं, तैजस शरीर तेथी अनंतगुण परमाणुओनुं, अने कार्मण शरीर तेथी पण अनंतगुण परमाणुओनुं बनेलुं छे.
॥ पांच शरीरना स्वामी. ॥
औदा० शरीर सर्वतिर्यंच अने सर्वमनुष्यने होय, वै० शरीर