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॥ जीवंतत्त्वे पञ्चेन्द्रियप्राणवर्णनम् ॥
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छे, तथा असंख्य आकाश प्रदेश जेटलाक्षेत्रमा रहेली छे तोपण परस्पर होनाधिकता कहेवाय छे-चक्षु इन्द्रिय सर्वथी ओछा (पण असंख्य) आकाश प्रदेशमा रहेली छे. अर्थात् चक्षु इन्द्रियर्नु 'कद सर्वथी नानुं छे, तेथी कर्णेन्द्रिय संख्यातगुणी मोटी छे, तेथीघ्राणेन्द्रिय संख्यातगुण मोटी छे. तेथी रसनेन्द्रिय असंख्य गुण मोटीछे, अने तेथी स्पर्शेन्द्रिय संख्यात गुण मोटीछे, तथा चक्षुइन्द्रिय अल्प परमाणुनी बनेली छे, तेथी श्रोत्रेन्द्रिय संख्यात गुण परमाणुनी बनेली छे, तेथी घ्राणेन्द्रिय असंख्य गुण परमाणुनी बनेली छे, तेथी जीहा असंख्य गुण परमाणुनी बनेली छे, अन तेथी स्पर्शेन्द्रिय असंख्यगुण परमाणुओनी बोली छे.
पुनः संज्ञी जीवमां आ इन्द्रियो विषय ग्रहण करो मनने जागृत करे, अने ते मनद्वारा जीवने विषयबोध थाय, परन्तु मन विना इन्द्रिय मात्रथी ज संज्ञी जीवने विषयबोध न होय, अने असज्ञि जीवो तो मननी सहाय विना परभार्यो इन्द्रियद्वारा विषयबोध करी शके छे.
॥ कइ इन्द्रिय कया जीवने होय?॥ स्पर्शेन्द्रिय सर्व संसारी जीव मात्रने होय, रसनेन्द्रिय पृथ्वी
१ आहि कद् ते लंबाइ प्होळाइरूप गणवू पण जाडाइरूप नहिं. कारणके जाडाइ तो सर्वनी अंगुलनो असंख्यातमो भाग ज छे.
२ अंगुलना असंख्यतमा भाग करतां अंगुल पृथक्त्व असंख्यगुण मोटु होवाथी.
३ ९ आत्माअंगुलथी ३ गाउ ( स्पर्शन्द्रिय वधुमां वधु ३ गाउ मोटी होषाथी ) एटले ५७६००० उत्सेध अंगुल संख्यात गुण होवाथी.