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________________ (६८) ॥श्रीनवतत्वविस्तरार्थः । जळ अग्नि वायु ने वनस्पति ए पांच स्थावर विना सर्व जीवने होय, घाणेन्द्रिय स्थावर अने द्वीन्द्रिय सिवायना सर्व जीवने होय, चक्षु इन्द्रिय स्थावर-वे इन्द्रिय-अने त्रीन्द्रिय सिवाय सर्व जीवने होय, अने श्रोत्रेन्द्रिय फक्त पंचेन्द्रिय जीवोने ज होय. ॥ कइ इन्द्रियो अल्प अने कइ अधिक छे? ॥ सर्व जगतमां कर्णेन्द्रियनी संख्या अल्प छे ( कारणके पंचेन्द्रिय जीवो थोडाज छे), तेथी चक्षु इन्द्रिय विशेषाधिक छे (एटले दिगुणयी न्यून छ. ), तेथी घाणेन्द्रिय विशेषाधिक छे, तेथी रसनेन्द्रिय विशेषाधिक छे, तेथी स्पर्शेन्द्रिय अनंत गुण छे. ( कारणके साधारण वनस्पति अनंत छे ) ए प्रमाणे ५ इन्द्रिय प्राणर्नु किंचित् स्वरूप कहीने हवे छट्ठा मनोबल प्राणनुं स्वरूप कहेवाय छे.
SR No.002215
Book TitleNavtattva Vistararth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Granth Prakashak Sabha
PublisherJain Granth Prakashak Sabha
Publication Year1923
Total Pages426
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, B000, & B010
File Size7 MB
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