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॥ जीवत् पञ्चेन्द्रियमाणवर्णनम् ॥
( ६५ ) श्री नकळेला केटलाक पुद्गलो आवी रसनेन्द्रियने अडेछे तेथी ते दूरना पदार्थोंना पण रसने रसनेन्द्रिय ग्रहण करेछे, अने अधिक दूर रहेला पदार्थोंमांथी नीकळेला रसयुक्त पुद्गलो स्वभावेज रसनेन्द्रियने अयोग्य थाय छे, (अहिं खारो रस मधुररसमां अंतर्गत जाणवो.)
३ घ्राणेन्द्रिय पदार्थोंमां रहेल सुगंध वा दुर्गंधने जाणी शके छे. अने ९ योजन दूरथी आवेलो गंध ग्रहण करी शके छे. पूर्वनी माफक योग्यायोग्यत्वनी भावना विचारी लेबी.
४ चक्षु इन्द्रिय पदार्थोंना रूप-वर्ण अने आकारने देखी शके छे. अने ते वधुमां वधु लाख योजऩ दूर रहेला निस्तेज पदार्थोंने देखी शके छे, अने चंद्र सूर्यादि तेजस्वी पदार्थोंने तो घणा लाख (२१ लाख - उपरांत योजन दूरथी पण पुष्करार्धना मनुष्यो ) देखी शके छे. आ रूप पण कृष्ण - नील - पीत-रक्त अने श्वेत ( काळो - लीलो-पीळो--लाल- अने धोको ) एम ५ प्रकारे छे.
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५ श्रोत्रेन्द्रिय सचित्त अचित्त अने मिश्र शब्द - अवाजने सांभळी शके छे, अने ते १२ योजन दूरथी आवेल शब्दने सांभ - ळी शके छे. ए. प्रमाणे उत्कृष्ट क्षेत्रमर्यादा कही, अने जघन्य (लघुमां लघु ) क्षेत्रमर्यादा आ प्रमाणे – चक्षु इन्द्रिय अंगुलना संख्यातमा भाग जेटले दूर रहेलो पदार्थ देखी शके, अने शेष इन्द्रियो अ
१ सजीव वस्तुमांथी प्रगट थयेलो शब्द सचित्त गणाय जेम जीवनो.
२ निर्जीव वस्तुमांथी प्रगट थयेलो शब्द अचित्त गणाय जेम पथरानी साथे अफळायला पृथ्थरनो.
३ जीव प्रयत्नथी थयेलो निर्जीव पदार्थनो शब्द मिश्र गणाय. जेम मोंढाथी वागती मूंगळ वगेरेनो, अहिं प्रसंगे ८ स्पर्श५ रस- २ गंध-९ रूप ( वर्ण ) - अने ३ शब्द मली पांच इन्द्रि योना २३ विषयो पण कह्या.