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पारिभाषिक शब्द-कोष
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- आजीविक-मखली पुत्र गौशालक की सम्प्रदाय, आज उसका अस्तित्व नहीं रहा और न उसका साहित्य ही उपलब्ध होता है।
आतंकदर्शी-नरक-तिर्यंच आदि गति में मिलने वाले दुःखों एवं आतंक को देखने वाला या पाप-कर्म करते हुए डरने वाला।
आत्मतुला-आत्मा का तराजू, अर्थात् कार्य करने से पूर्व वह उसे अपनी आत्मा की आवाज से परख लेता है। . आत्मवादी-आत्मा के यथार्थ स्वरूप का प्रतिपादन करने वाला।
आत्मश्लाघा-अपनी आत्मप्रशंसा। आत्यन्तिक-पूर्ण रूप से।
आधाकर्मी आहार-जो आहार आदि उपभोग के पदार्थ साधु के निमित्त हिंसा करके तैयार किए जाते हैं।
आप्त-पूर्ण पुरुष-जिसमें राग-द्वेष या दोषों की जरा भी कालिमा अवशेष नहीं रही है। - आम-अपक्व पापकर्म और आधाकर्म-जो आहार-पानी आदि उपभोग के पदार्थ साधु के निमित्त से बनाए जाते हैं, दोष।
आयत-कभी समाप्त नहीं होने वाला स्वरूप, मोक्ष।
आयुकर्म-जिस कर्म के कारण जीव (आत्मा) अपने शरीर में स्थित रहता है और जिसके समाप्त होते ही जीव (आत्मा) शरीर को छोड़ कर दूसरी गति या मोक्ष में चला जाता है।
आर्त-राग-द्वेष एवं विषय-कषाय से आवृत्त घिरा हुआ।
आर्त-रौद्र-ध्यान-दुःख से पीड़ित होकर सदा दुःख एवं शोक में डूबे रहना तथा रुद्र-दूसरे का समूलतः नाश करने का भाव रखना, सदा अत्यधिक दुर्भावनाओं में डूबे रहना। दूसरे का नाश करने के उपायों को सोचते रहना।
आवृत-ढका हुआ, आच्छादित। आवर्त-संसार।