________________
902
श्री आचाराङ्ग सूत्र, प्रथम श्रुतस्कंध
का अर्थ-विकास करके घोर तपस्वी भगवान महावीर के लिए उसे विशेषण रूप से दिया है। इसके अतिरिक्त आचाराङ्ग सूत्र में कई स्थलों पर आर्य, ब्राह्मण, मेधावी, वीर, बुद्ध, पंडित, वेदविद् आदि शब्दों का प्रयोग हुआ है। इससे यह फलित होता है कि भगवान महावीर ने इन शब्दों के प्रयोग में होने वाले हिंसा, शोषण एवं उत्पीड़न के जहर को अमृत के रूप में परिणत करके इन शब्दों को गौरवान्वित किया और आर्य एवं आर्यपथ को भी दिव्य-भव्य एवं उन्नत बनाया।
'त्तिबेमि' का विवेचन पूर्ववत् समझें।
॥ चतुर्थ उद्देशक समाप्त ॥
॥ नवम अध्ययन समाप्त ॥