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नवम अध्ययन, उद्देशक 4
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करते, कभी तीन, कभी चार और कभी पांच उपवास के पारने में पर्युषित बासी आहार करते थे। वे इस तरह की कठोर तप-साधना करते हुए भी समाधि का पर्यालोचन करते हुए निदान-रहित क्रियानुष्ठान करते थे। हिन्दी-विवेचन
भगवान की तपस्या का वर्णन करते हुए बताया गया है कि भगवान कभी दो उपवास के बाद बासी आहार से पारणा करते थे। इसी तरह कभी तीन, कभी चार और कभी पांच उपवास के बाद वे बासी आहार से पारणा करते थे। इससे भगवान की आहार एवं शरीर आदि के प्रति स्पष्ट रूप से अनासक्ति प्रकट होती है। उनका अधिक समय तप एवं आत्मचिन्तन में ही लगता था।
प्रस्तुत गाथा .. प्रयुक्त 'छठेण एगया भुजे' का दो उपवास के बाद अर्थ कैसे हुआ? इसके समाधान में यह जा सकता है कि वृत्तिकार ने इसका यही अर्थ किया है कि उपवास के एक दिन के दो वक्त में से एक वक्त आहार करते हैं, उपवास के प्रथम एवं द्वितीय दिन के दोनों वक्त आहार नहीं करते और पारणे के दिन भी दो वक्त में से एक वक्त आहार करते हैं, इस तरह 1 + 2 + 2 + 1 = 6 अर्थात् षष्ठ वक्त या छटुं भत्तं का अर्थ दो उपवास के बाद होता है। मूलम्- णच्चा णं से महावीरे, नोऽविय पावगं सयमकासी।
अन्नेहिं वा ण कं रित्था, कीरंतपि नाणुजाणित्था॥8॥ छाया- ज्ञात्वा णं स महावीरः, नापि च पापकं स्वयमकार्षीत्।
अन्यै वा न अचीकरत् क्रियमाणमपि नानुज्ञातवान् ॥ पदार्थ-से-वह। महावीरे-भगवान महावीर। णच्चा-हेय-ज्ञेय और उपादेय रूप पदार्थों को जानकर। सयं-स्वयं। पावगं-पापकर्म। नोऽविय अकासी-नहीं करते थे। वा-अथवा। अन्नेहिं-दूसरों से। न कारित्था-नहीं करवाते और। 1. कि च षष्ठेनैकदा भुंक्ते-षष्ठं हि नाम एकस्मिन्नहानएक भक्त विध य पुनादन '
द्वयमभुक्त्वा चतुर्थेऽन्हि एक भक्तमेव विधत्ते, ततश्चाद्य तयोरेक भक्तदिनयो भक्तद्वयं मध्य दिवसयोश्च भक्तचतुष्टयमित्येवं षण्णां भक्तानां परित्यागात् षष्ठं भवति एवं दिनादि बुद्धयाऽष्ट माद्यायोज्यमिति।
-आचाराङ्ग वृत्ति।