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________________ नवम अध्ययन, उद्देशक 4 883 छाया- आतापयति ग्रीष्मेषु, तिष्ठति उत्कुटुकः अभितापम्। अथ यापयति स्म रुक्षेण ओदन मन्थु कुल्माषण। पदार्थ-गिम्हाणं-वे ग्रीष्म ऋतु में। आयावइ-आतापना लेते थे। य–पुनः। उक्कुड्डए-उत्कुट आसन से। अभित्तावे-सूर्य के सन्मुख। अच्छइ-स्थित होते थे। अदु-अथवा। लूहेणं-रूक्षाहार एवं। ओयण मंथु कुम्मासेणं-चावल या वैरादि का चूर्ण या कुल्माष-उड़द आदि से शरीर का। जावइत्थ-निर्वाह करते थे। - मूलार्थ-भगवान महावीर ग्रीष्म ऋतु में उत्कट आसन से सूर्य के सन्मुख होकर आतापना लेते थे और धर्म-साधना के कारण रूप शरीर को चलाने के लिए चावल, बेर का चूर्ण एवं उड़द के बाकले आदि रूक्ष आहार लेकर अपना निर्वाह करते थे। मूलम्- एयाणि तिन्नि पडिसेवे अट्ठमासे अजावयं भगवं। अपिइत्थ एगया भगवं अद्धमासं अदुवा मासंपि॥5॥ छाया- एताणि त्रीणि प्रतिसेवते, अष्टौ मासानयापयत् भगवान। अपियत् एकदा भगवान अर्द्धमासं अथवा मासमपि। पदार्थ-एयाणि-ये। तिन्नि-तीनों आहारों का। पडिसेवे-सेवन करके। भगवं-भगवान ने। अट्ठमासे-आठ मास तक। अजावयं-काल यापन किया। एगया-एक बार। भगवं-भगवान। अद्धमासं-अर्द्ध मास। अदुवा-अथवा। मास-मास तक। अपिइत्थ-निराहार रहे-जल भी नहीं लिया। मूलार्थ-श्रमण भगवान महावीर ने उक्त तीनों पदार्थों के द्वारा आठ मास तक समय यापन किया। कभी-कभी भगवान ने आधे मास या एक मास तक जल-पान भी नहीं किया, अर्थात् पानी भी नहीं पिया। हिन्दी-विवेचन प्रस्तुत उभय गाथाओं में भगवान महावीर की तपस्या का दिग्दर्शन कराया गया है। जैसे भगवान शीतकाल में छाया में ध्यान करते थे, उसी तरह ग्रीष्म काल में
SR No.002206
Book TitleAcharang Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages1026
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size19 MB
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