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नवम अध्ययन, उद्देशक 4
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छाया- आतापयति ग्रीष्मेषु, तिष्ठति उत्कुटुकः अभितापम्।
अथ यापयति स्म रुक्षेण ओदन मन्थु कुल्माषण। पदार्थ-गिम्हाणं-वे ग्रीष्म ऋतु में। आयावइ-आतापना लेते थे। य–पुनः। उक्कुड्डए-उत्कुट आसन से। अभित्तावे-सूर्य के सन्मुख। अच्छइ-स्थित होते थे। अदु-अथवा। लूहेणं-रूक्षाहार एवं। ओयण मंथु कुम्मासेणं-चावल या वैरादि का चूर्ण या कुल्माष-उड़द आदि से शरीर का। जावइत्थ-निर्वाह करते थे। - मूलार्थ-भगवान महावीर ग्रीष्म ऋतु में उत्कट आसन से सूर्य के सन्मुख होकर आतापना लेते थे और धर्म-साधना के कारण रूप शरीर को चलाने के लिए चावल, बेर का चूर्ण एवं उड़द के बाकले आदि रूक्ष आहार लेकर अपना निर्वाह करते थे। मूलम्- एयाणि तिन्नि पडिसेवे अट्ठमासे अजावयं भगवं।
अपिइत्थ एगया भगवं अद्धमासं अदुवा मासंपि॥5॥ छाया- एताणि त्रीणि प्रतिसेवते, अष्टौ मासानयापयत् भगवान।
अपियत् एकदा भगवान अर्द्धमासं अथवा मासमपि। पदार्थ-एयाणि-ये। तिन्नि-तीनों आहारों का। पडिसेवे-सेवन करके। भगवं-भगवान ने। अट्ठमासे-आठ मास तक। अजावयं-काल यापन किया। एगया-एक बार। भगवं-भगवान। अद्धमासं-अर्द्ध मास। अदुवा-अथवा। मास-मास तक। अपिइत्थ-निराहार रहे-जल भी नहीं लिया।
मूलार्थ-श्रमण भगवान महावीर ने उक्त तीनों पदार्थों के द्वारा आठ मास तक समय यापन किया। कभी-कभी भगवान ने आधे मास या एक मास तक जल-पान भी नहीं किया, अर्थात् पानी भी नहीं पिया।
हिन्दी-विवेचन
प्रस्तुत उभय गाथाओं में भगवान महावीर की तपस्या का दिग्दर्शन कराया गया है। जैसे भगवान शीतकाल में छाया में ध्यान करते थे, उसी तरह ग्रीष्म काल में