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नवम अध्ययन, उद्देशक 4
स्नानं करना और दाँतुन आदि से दाँतों को साफ करना इत्यादि क्रियाओं का आचरण नहीं करते थे। हिन्दी-विवेचन
भगवान महावीर का ध्यान आत्मा की ओर लगा था। शरीर पर उन्होंने कभी ध्यान नहीं दिया। वे जानते थे कि यह शरीर नश्वर है। इसलिए वे किसी रोग के उत्पन्न होने पर उसे उपशान्त करने के लिए या भविष्य में रोग न हो, इस भावना से कभी विरेचन-जुलाब नहीं लेते थे और उन्होंने साधनाकाल में अपने शरीर को स्वस्थ करने के लिए किसी भी तरह की चिकित्सा नहीं की। वे शरीर की ओर न देखकर सदा अपनी आत्मा की ओर देखते थे और आत्मा को अनावृत करने में ही प्रयत्नशील थे।
उनका चिन्तन किस ओर था, इसका उल्लेख करते हुए सूत्रकार कहते हैंमूलम्- विरए गाम धम्मेहिं रीयइ माहणे अबहुवाई।
- सिसिरेमि एगया भगवं छायाए झाइ आसीय॥3॥ छाया- विरतः ग्रामधर्मेभ्यः, रीयते माहनः अबहुवादी।
शिशिरे एकदा भगवान् छायायां ध्यायी आसीत्॥ पदार्थ-गामधम्मेहि-विषय-विकारों से। विरए-निवृत्त हुए। अबहुवाई-अल्प भाषी। माहणे-भगवान महावीर। रीयइ-संयम में पुरुषार्थ करते हैं। एगयाकभी-कभी। भगवं-भगवान। सिसिरंमि-शीत काल में। छायाए-छाया में। झाइ आसीय-धर्म और शुक्ल ध्यान ध्याते थे।
मूलार्थ-विषय-विकारों से निवृत्त हुए अल्पभाषी भगवान महावीर संयम में पुरुषार्थ करते हुए शीतकाल में भी कभी-कभी छाया में धर्म और शुक्ल ध्यान ध्याते थे। हिन्दी-विवेचन
साधना के पथ पर गतिशील भगवान महावीर विषय-विकारों से सर्वथा निवृत्त हो गए थे। वे साधनाकाल में प्रायः मौन ही रहे थे और किसी के पूछने पर उत्तर देना