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________________ नवम अध्ययन, उद्देशक 3 873 पदार्थ-अपडिन्न-प्रतिज्ञा से रहित भगवान को। उवसंकमन्तं-भिक्षा या स्थान के लिए। गामंतियम्मि-ग्राम के समीप जाते हुए। अप्पत्तं-ग्राम के प्राप्त होने पर या अप्राप्त होने पर अथवा। पडिनिक्खमित्तु-ग्राम से बाहर निकलते हुए। लूसिंसु-उन लोगों ने भगवान को मारा और कहा कि। एयाओ-तुम इस स्थान से। परं-दूर। पलेहित्ति-चले जाओ। मूलार्थ-जब अप्रतिज्ञ भगवान भिक्षा या स्थान के लिए ग्राम के समीप पहुंचते या नहीं पहुंचते अथवा ग्राम से बाहर निकलते हुए होते तो अनार्य लोग पहले तो भगवान को पीटते और फिर कहते कि तुम यहां से दूर चले जाओ। मूलम् - हय पुवो तत्थ दण्डेण, अदुवा मुट्ठिणा अदु कुन्तफलेण। अदु लेलुणा कवालेण हंता हंता बहवे कंदिसु॥10॥ छाया- हत पूर्वः तत्र दण्डेन, अथवा मुष्टिना अथवा कुन्तफलेन। — अथवा लोष्टुना कपालेन, हत्वा हत्वा बहवश्चक्रन्दुः ॥ पदार्थ-तत्थ-उस लाढ़ देश में विचरते हुए भगवान को उन अनार्य लोगों ने। पुव्वो-पहले किससे मारा? । दंडेन-डंडो से। अदुवा-अथवा। मुट्ठिणा-मुक्कों से। अदु-अथवा। कुन्तफलेण-कुन्त आदि के अग्रभाग और फलक से। अदुअथवा। लेलुणा-पत्थरों से। कवालेण-ठोकरों से। हय-मारा, इसके पश्चात्। हन्ताहंता-उन्हें मारते-मारते। बहवे-बहुत-से अनार्य लोग। कन्दिंसु-कोलाहल . करते कि अरे लोगो! देखो, देखो यह कौन है? मूलार्थ-उस लाढ़ देश में ग्राम से बाहर ठहरे हुए श्रमण भगवान महावीर को अनार्य लोग पहले तो डण्डों, मुक्कों, कुन्त फलक, पत्थर और ठोकरों से मारते और उसके पश्चात् शोर मचाते कि अरे लोगो! आओ, देखो यह सिर मुण्डित नग्न व्यक्ति कौन है? हिन्दी-विवेचन प्रस्तुत उभय गाथाओं में अनार्य लोगों के अशिष्ट व्यवहार का दिग्दर्शन कराया गया है। इसमें बताया है कि जब भगवान विहार करते हुए रात को ठहरने के लिए या भिक्षा के लिए गांव में जाते तो उस समय वहां के निवासी भगवान का उपहास
SR No.002206
Book TitleAcharang Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages1026
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size19 MB
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