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श्री आचाराङ्ग सूत्र, प्रथम श्रुतस्कंध
पदार्थ-नागो-हस्ती। संगाम सीसे-संग्राम में वैरी को जीतकर । वा-अथवा । पारए-पारगामी होता है। एवंपि-इसी प्रकार । से-वह। महावीरे-भगवान महावीर। तत्थ लाहिं-उस लाढ़ देश में परीषह रूप सेना को जीत कर पारगामी हुए तथा। एगया-एक बार। तत्थ-उस लाढ़ देश में। गामो-ग्राम। अलद्धपुव्वोवि-न मिलने पर उन्होंने अरण्य में ही वास किया।
मूलार्थ-जैसे रणभूमि में हाथी वैरी की सेना को जीत कर पारगामी होता है, उसी प्रकार भगवान महावीर भी उस लाढ़ देश में परीषह रूपी सेना को जीत कर पारगामी हुए। एक समय उस लाढ़ देश में ग्राम के न मिलने पर वे अरण्य में ही ध्यानस्थ हो गए। हिन्दी-विवेचन __ प्रस्तुत गाथा में बताया गया है कि जैसे सुशिक्षित हाथी शत्रु के भालों की परवाह किए बिना उसके सैन्यदल को रौंदता हुआ चला जाता है और शत्रु पर विजय प्राप्त करता है, उसी तरह भगवान महावीर ने लाढ़ देश में परीषह रूपी शत्रु सेना पर विजय प्राप्त की। वे साधनाकाल में परीषहों से कभी नहीं घबराए। ___ लाढ़ देश में विचरते समय एक बार भगवान को संध्या समय गांव नहीं मिला। इससे स्पष्ट होता है कि लाढ़ देश में गांव बहुत दूर-दूर थे। रास्ते में ही संध्या हो जाने के कारण भगवान जंगल में ही ध्यानस्थ हो गए। इस तरह भगवान जंगल में घबराए नहीं और यह भी नहीं सोचा कि यहां जंगली जानवर मुझे कष्ट देंगे। वे निश्चिन्त होकर आत्म-चिन्तन में संलग्न हो गए।
- अब लाढ़ देश में अनार्य लोगों द्वारा भगवान को दिए गए परीषहों का उल्लेख करते हुए सूत्रकार कहते हैंमूलम्- उवसंकमन्तमपडिन्नं, गामंतियम्मि अप्पत्तं।
पडिनिक्खमित्तु लूसिंसु, एयाओ परं पलेहित्ति॥9॥ . छाया- उपसंक्रामन्तं अप्रतिज्ञ, ग्रामान्तिकं अप्राप्तम्।
प्रतिनिष्क्रम्य अलूलिषुः इतः परं पर्येहीति ॥