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नवम अध्ययन, उद्देशक 3
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कहा-हे इन्द्र! जितने भी तीर्थंकर एवं सर्वज्ञ हुए हैं, वे स्वयं ही अपने कर्म काट कर हुए हैं। अतः प्रत्येक आत्मा को अपने बांधे हुए कर्मों को तोड़ना होगा। दूसरे की सहायता से कर्मों को नहीं तोड़ा जा सकता है। तुम्हारे साथ रहने से तुम्हारे डंडे के भय से लोग मुझे कष्ट नहीं देंगे, इससे मेरी भावना में सहिष्णुता का वेग नहीं आ सकेगा और परिणामस्वरूप कर्मों की निर्जरा भी रुक जाएगी। अतः देवेन्द्र! कोई भी अर्हन्त अपने कर्मों को तोड़ने के लिए देव या देवेन्द्र या किसी अन्य शक्ति का सहारा नहीं लेते हैं। वे स्वयं अपनी शक्ति से अपने कर्मों का नाश करते हैं।
___इस तरह अपने कर्मों का क्षय करने के लिए भगवान धर्म से अपरिचित लाढ़ देश (अनार्य भूमि) में चले गए। यह देश वज्र, कठोर और शुभ्र भूमि वाला है। परन्तु अधिकांश भाग वज्र भूमि वाला ही है। यहां के लोगों का हृदय भी वज्र की तरह ही कठोर था। उस देश में भगवान को स्थान भी तुच्छ ही मिलता था और शय्या-तृण आदि भी तुच्छ ही मिलते थे। ___ पन्नवणा सूत्र के प्रथम पद में साढ़े पच्चीस आर्य देशों के नाम गिनाए हैं। उन में लाढ़ देश का नाम नहीं होने से यह अनार्य देश ही प्रतीत होता है। इस देश के लिए दिया गया 'दुश्चर' विशेषण और स्थान एवं शय्या के साथ दिया गया प्रान्त तुच्छ शब्द का प्रयोग इस बात की ओर संकेत करता है कि यह देश आर्य देश के निकट एक अनार्य देश था। . . ' प्रस्तुत गाथा में दिए गए लक्षणों से ऐसा प्रतीत होता है कि यह देश तक्षशिला के निकट था। कल्प सूत्र की एक कथा में बताया गया है कि भगवान महावीर जब ‘सेविया' श्वेतवित्ता नगरी में पधारे तो वहां प्रदेशी राजा ने उनकी बहुत भक्ति की थी। संभव है कि उस नगरी के ऊपर के प्रदेश में भगवान पधारें हों, जहां उन्होंने अनेक परीषहों को सहन किया था।
प्रस्तुत गाथा में 'पंत'–प्रान्त शब्द का दो बार प्रयोग किया गया है। उसमें पहले प्रान्त शब्द की व्याख्या अर्धमागधी कोष में इस प्रकार दी है-1-तुच्छ, 2-खराब, निकम्मा, निम्न श्रेणी का, बिना रस का, 3–भोजन करने के बाद बची हुई जूठन, 3-धर्म भ्रष्ट हुआ व्यक्ति, 4-खराब लक्षण, 5-अपशब्द, 6–अन्तवर्ती,