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________________ नवम अध्ययन, उद्देशक 2 रहे, उस समय भी समाधि भाव में स्थित रहे और प्रतिशोध लेने की भावना न रखे। जीवन की बहुत बड़ी शक्ति है। बोलने से मनुष्य की शक्ति का व्यय होता है। वैज्ञानिकों ने अन्वेषण के द्वारा यह सिद्ध कर दिया है कि मनुष्य जितना अधिक बोलता है, वह उतना ही जल्दी मरता है । क्योंकि उसकी शक्ति अधिक नष्ट होती है और शक्ति के क्षय होने का अर्थ है - मृत्यु को प्राप्त करना । जैनागमों में आयुष्य का नाप वर्षों, महीनों, दिनों, घड़ियों एवं मिनटों में नहीं, अपितु श्वासोच्छ्वास में माना गया है। मनुष्य जितना तेज चलता है, जितना अधिक एवं जोर से बोलता है, जितना ज्यादा शयन करता है, जितना ज्यादा भोग-विलास एवं व्यसनों में संलग्न रहता है, उसका श्वास उतनी ही तीव्र गति से चलता है और वह अपनी संचित आयु कर्म की पूंजी को थोड़े समय में ही भोगकर आगे के लिए चल पड़ता है और जो व्यक्ति चलने, बैठने, बोलने, खाने-पीने एवं भोग भोगने में जितना अधिक संयम एवं विवेक रखता है, वह उतने ही अधिक काल तक जीवित रहता है। चूँकि मौन में साधक के श्वासोच्छ्वास तेजी से नहीं चलते, इसलिए मौन रखना एवं स्वल्प, धीमे और मृदु स्वर में बोलना जीवन को संभाल कर रखना है । अस्तु, वैज्ञानिक एवं आगमिक दृष्टि से अधिक बोलना अहितकर है और मौन रखना या मर्यादित बोलना हितप्रद है। 857 अधिक बोलने से मनुष्य की शक्ति का क्षय भी होता है और साथ में मानसिक चिन्तन भी बिखर जाता है और मौन रखने से मनुष्य की वह शक्ति चिन्तन में लगी रहती है और उससे आत्मा का विकास होता है। इसलिए मौन आत्मविकास में सहायक है। 1 अधिक बोलने से व्यर्थ के झगड़े बढ़ते हैं और फिर मनुष्य किसी भी बात को सहन नहीं कर सकता और साधक के लिए यह सबसे बड़ा दोष है | चूँकि अधिक बोलने से सहिष्णुता का नाश होता है, इसलिए मौन सहिष्णुता को बढ़ाने वाला है सहिष्णुता से संसार के संघर्ष समाप्त हो जाते हैं और मन समाधि भाव में संलग्न हो जाता है। इससे वैर-विरोध एवं प्रतिशोध की भावना का नाश हो जाता है । इस तरह शुद्ध भाव से रखा गया मौन सर्व गुणों में अभिवृद्धि करने वाला है । यह लोकोक्ति भी बिलकुल सही है - सब काम सिद्ध करने के लिए 'एक नकार भली ।' अर्थात् मनुष्य
SR No.002206
Book TitleAcharang Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages1026
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size19 MB
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