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नवम अध्ययन, उद्देशक 2
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हिन्दी-विवेचन
यह हम देख चुके हैं कि भगवान महावीर सदा प्रमाद से दूर रहे हैं। उन्होंने कभी भी निद्रा लेने का प्रयत्न नहीं किया। क्योंकि निद्रा दर्शनावरणीय कर्म के उदय से आती है और दर्शनावरणीय कर्म संसार-परिभ्रमण का कारण है। वह अनन्त दर्शन शक्ति को आवृत किए हुए है। अतः भगवान उसे नष्ट करने के लिए उद्यत हो गए। निद्रा आने के मुख्य कारण हैं-अति भोग-विलास और अति आहार । भगवान ने भोगों का सर्वथा त्याग कर दिया था और आहार भी वे स्वल्प ही करते थे। उनके बहुत-से दिन तो तपस्या में बीतते थे, पारणे के दिन भी वे रूक्ष एवं स्वल्प आहार ही स्वीकार करते थे। इससे उनकी अप्रमत्त साधना में तेजस्विता बढ़ती गई। फिर भी यदि कभी उन्हें निद्रा आने लगती तो वे खड़े होकर उसे दूर करते थे। यदि सर्दी के दिनों में गुफा में या किसी मकान में स्थित रहते हुए निद्रा आने लगती तो वे बाहर खुले में आकर थोड़ी देर चंक्रमण करनेटहलने लगते । इस तरह भगवान सदा द्रव्य एवं भाव से जागृत रहे। द्रव्य से उन्होंने कभी निद्रा का सेवन नहीं किया और भाव से सदा रत्नत्रय की साधना में संलग्न रहे। ____ भगवान की विहारचर्या में उत्पन्न होने वाले कष्टों का उल्लेख करते हुए सूत्रकार कहते हैंमूलम्- सयणेहिं तत्थुवसग्गा भीमा आसी अणेगरूवा य।
संसप्पगा य जे पाणा अदुवा जे पक्खिणो उवचरंति॥7॥ अदु कुचरा उवचरंति, गामरक्खा य सत्ति हत्थाय।
अदु गामिया उवसग्गा, इत्थी एगइ या पुरिसा य ॥8 छाया- शयनेषु तत्रोपसर्गा भीमाः आसन् अनेक रूपाश्च।
संसाकाश्च ये प्राणाः अथवा ये पक्षिणः उपचरन्ति॥ अथकुचरा उपचरंति, ग्रामरक्षकाश्च शक्तिहस्ताश्च ।
अथ ग्रामिका उपसर्गाः स्त्रिय एकाकिनः पुरुषाश्च॥ .. पदार्थ-तत्थ सयणेहि-भगवान को उन बस्तियों में। जे-जो। संसप्पगासर्पादि। पाणा-प्राणियों से युक्त हैं। य-और । अदुवा-अथवा। पक्खिणो-गृधादि पक्षी हैं। य-पुनः । उवचरंति-भगवान के निकट मांसादि का भक्षण करते हैं, वहां
य
॥8॥