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________________ नवम अध्ययन, उद्देशक 2 841 प्रस्तुत गाथा में शय्या आदि के सम्बन्ध में उठाए गए प्रश्न का समाधान करते हुए सूत्रकार कहते हैंमूलम्- आवेसणसभापवासु पणियसालासु एगया वासो। अदुवा पलियठाणेसु पलाल पुंजेसु एगया वासो॥2॥ __ छाया- आवेशनसभाप्रवासु, पण्यशालासु एकदावासः। अथवा कर्म स्थानेषु, पलालपुंजेषु एकदा वासः॥ . पदार्थ आवेसण-शून्य घर में। सभा-सभा में। पवासु-पानी के स्थान-प्याऊ में। पणियसालासु-पण्यशाला-दुकानों में। एगया वासो-किसी समय पर भगवान ने निवास किया। पलियठाणेसु-लुहार आदि की शाला में। पलाल पुंजेसु-पलाल पुंज में जहां चारों ओर स्तम्भों के सहारे पलाल को एकत्रित करके रक्खा हो, ऐसे स्थान में। एगयावासो-कभी निवास किया था-ठहरे थे। ___ मूलार्थ-किसी समय भगवान महावीर ने शून्य घर में, सभा-भवन में, पानी पिलाने की प्याऊ में, दुकान में, लुहार की शाला में या जहां पलाल का समूह एकत्रित कर रखा हो, ऐसे स्थान में निवास किया, अर्थात् ऐसे स्थानों में भगवान महावीर ठहरे थे। हिन्दी-विवेचन - प्रस्तुत गाथा में उस युग के निवास स्थानों का वर्णन किया गया है जिनमें लोग रहते थे या पथिक विश्राम लेते थे। वे इस प्रकार हैं__ 1. शून्य घर-जिस मकान में कोई न रहता हो तो उसे शून्य घर कहते हैं। आज कई प्राचीन शहरों एवं जंगलों में शून्य खण्डहर एवं मकान मिलते हैं। भगवान महावीर भी कभी ऐसे स्थानों में ठहर जाते थे। ये स्थान एकान्त एवं स्त्री-पुरुष, पशु आदि से रहित होने के कारण साधना एवं आत्मचिन्तन के अनुकूल होते हैं। 2. सभा-गाँव या शहर के लोगों के विचार-विमर्श करने के लिए एक सार्वजनिक स्थान होता था। बाहर गांवों से आने वाले यात्री भी उसमें ठहर जाते थे। आज भी अनेक गांवों में पथ से गुजरते हुए पथिकों के ठहरने के लिए एक स्थान बना होता है और शहरों में ऐसे स्थानों को धर्मशाला कहते हैं। उस युग में उसे सभा कहते थे। भगवान भी कभी सूर्य अस्त हो जाने के कारण ऐसी सभाओं में रात्रि व्यतीत करते थे।
SR No.002206
Book TitleAcharang Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages1026
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size19 MB
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