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श्री आचाराङ्ग सूत्र, प्रथम श्रुतस्कंध
का सेवन किया था । यह गाथा अपने आप में इतनी स्पष्ट है कि इसके लिए व्याख्या की आवश्यकता ही नहीं है ।
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चूर्णिकार ने प्रस्तुत उद्देशक की इस गाथा को उद्धृत करके उसके विषय में“ऐसा पूछा, अर्थात् यह प्रश्न है” – ऐसा कहा है । परन्तु, इसकी व्याख्या नहीं की किन्तु, आचार्य शीलांक ने लिखा है कि प्रस्तुत गाथा शास्त्र में उपलब्ध होती है। परन्तु चिरन्तन टीकाकार ने उसकी व्याख्या नहीं की है। इसका कारण गाथा की सुगमता है या उन्होंने इसे मूल सूत्र की गाथा नहीं माना। इस सम्बन्ध में कुछ नहीं कह सकते। आचार्य शीलांक ने किसी टीकाकार के नाम का उल्लेख न करके केवल चिरन्तन टीकाकार शब्द का प्रयोग किया है। इससे ऐसा लगता है कि चिरन्तन टीकाकार शब्द से चूर्णिकार अभिप्रेत हो सकते हैं, क्योंकि उन्होंने इस गाथा को उद्धृत तो किया है, परन्तु उसकी व्याख्या नहीं की और चूर्णिकार के अतिरिक्त अन्य ऐसे टीकाकार भी अभिप्रेत हो सकते हैं, जिनकी टीका उनके युग में प्रचलित रही हो, और आज उपलब्ध न हो । परन्तु, इतना स्पष्ट है कि शीलांक से भी पूर्व आचारांग पर टीका लिखी जा चुकी थी । इस तरह जैनागमों पर और भी अनेक टीकाएं, चूर्णि एवं भाष्य आदि लिखे गए हैं। परन्तु, आज उनके अनुपलब्ध होने के कारण आगम के कई पाठों एवं उनके अर्थों में सन्देह-सा बना रहता है' । वर्तमान में प्राप्त टीका ग्रन्थ अपने युग में प्रचलित प्राचीन टीका ग्रन्थों के आधार पर ही संक्षिप्त एवं विस्तृत रूप से रचे गए हैं। किसी-किसी टीकाकार ने तो अपने पूर्व टीकाकार के भाव ही नहीं, अपितु, श्लोक एवं गाथाएं भी ज्यों-की-त्यों उद्धृत कर ली हैं। इससे यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि पुरातन टीकाएं कुछ अंश रूप में वर्तमान टीकाओं में सुरक्षित हैं।
1. बड़े दुःख के साथ लिखना पड़ता है कि जैन समाज के प्रमाद, आलस्य एवं ज्ञान और स्वाध्याय की कमी के कारण जैन साहित्य को बहुत बड़ी क्षति पहुंची है। अनेक बहुमूल्य ग्रन्थ तो भंडारों में पड़े-पड़े गल- सड़ गए, कुछ ग्रन्थों को दीमकों ने चट कर लिया तो कुछ ग्रन्थ चूहों के पैने दांतों के नीचे आ गए। कुछ ग्रन्थों को मुगलों ने आक्रमण के समय आग में जलाकर एवं जल में प्रवाहित करके नष्ट कर दिया । कुछ श्रेष्ठ ग्रंथों को अर्थलोलुप पुजारियों ने विदेशियों के हाथ बेच डाला । अतः बहुत-से ग्रन्थ ऐसे हैं कि आज उनका नाम मात्र ही शेष रह गया है और कतिपय ग्रन्थ छिन्न-भिन्न अवस्था में मिलते हैं । वस्तुतः यह सब शोकास्पद ही है ।