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नवम अध्ययन : उपधान श्रुत
द्वितीय उद्देशक
प्रथम उद्देशक में भगवान महावीर की विहारचर्या-विधि का उल्लेख किया गया था। साधक चलता है तो उसे विश्राम भी लेना होता है, ठहरना भी पड़ता है। भगवान महावीर को भी अपनी साधना के लिए, आत्म-चिन्तन के लिए स्थान का सहारा लेना पड़ता था। अब प्रश्न यह है कि भगवान महावीर साधनाकाल में कैसे स्थान में ठहरे थे। वहां उन्होंने कौन-सी वस्तुओं का उपयोग किया था और साधक को कैसे मकान में ठहरना चाहिए?
इसका समाधान करते हुए प्रस्तुत उद्देशक में सूत्रकार कहते हैंमूलम्- चरियासणाई सिज्जाओ, एगइयाओ जाओ बुइयाओ।
आइक्ख ताई सयणासणाई जाइं सेवित्था से महावीरे॥1॥ छाया- चर्यासनानि शयनानि एकैकानि यानि अभिहितानि। .. आचक्ष्व तानि शयनासनानि यानि सेवितवान् स महावीरः॥ · पदार्थ-एगइयाओ-एक बार। बुइयाओ-जम्बू स्वामी के पूछने पर सुधर्मा स्वामी ने। चरियासणाई-विहारचर्या, आसन एवं। सिज्जाओ-बस्तिओं के सम्बन्ध में। आइक्ख-कहा। जाओ-जिन। सयणासणाइं-शय्या एवं आसन का। जाइंजो। से-उन भगवान महावीर ने। सेवित्था-सेवन किया। ___मूलार्थ-विहार के समय में भगवान महावीर ने जिस शय्या एवं आसन का सेवन किया, उसके संबन्ध में जम्बू स्वामी के पूछने पर सुधर्मा स्वामी ने इस प्रकार कहा। हिन्दी-विवेचन
प्रस्तुत गाथा प्रतिज्ञा सूत्र है। इसमें सूत्रकार यह प्रतिज्ञा करता है कि इस उद्देशक में मैं यह बताऊंगा कि भगवान ने विहारकाल में कैसी बस्ती एवं शय्या आदि