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________________ नवम अध्ययन, उद्देशक 1 831 पुरुष-संसर्ग का त्याग करना जरूरी है। क्योंकि दोनों के लिए दोनों मोह को जगाने का कारण हैं और मोह की जागृति से महाव्रतों का नाश होता है। अतः भगवान ने अब्रह्मचर्य का सर्वथा त्याग करके ब्रह्मचर्य व्रत को स्वीकार किया। साधना में प्रथम और चतुर्थ दो महाव्रत मुख्य हैं। दोनों में अन्य तीनों महाव्रतों का समावेश हो जाता है। पूर्ण अहिंसक एवं पूर्ण ब्रह्मचारी साधक न झूठ बोल सकता है, न चोरी कर सकता है और न परिग्रह की आकांक्षा रख सकता है। अतः दो महाव्रतों में पांचों का समावेश हो जाता है। मूल गुणों की व्याख्या करके अब सूत्रकार उत्तर गुणों का उल्लेख करते हैंमूलम्- अहाकडं न से सेवे, सव्वसो कम्म अदक्खू। · जं किंचि पावगं भगवं, तं अकुव्वं वियडं भुंजित्था॥18॥ 'छाया- यथाकृतं न सा सेवते, सर्वशः, कर्म अद्राक्षीत्। ____ यत्किंचित् पापकं भगवान् तदकुर्वन् विकटमभुक्त॥ . पदार्थ-अहांकडं-साधु के वास्ते बनाया हुआ आहार आधाकर्म आहार कहलाता है। से-भगवान उस आहार का। न सेवे-सेवन नहीं करते थे, क्योंकि उस आहार का सेवन करने से। सव्वसो-सर्व प्रकार से। कम्म-आठ प्रकार के कर्म का बन्धं होता है। अदक्खू-भगवान ने ऐसा देखा। जं किंचि-अतः जो आहार थोड़े से। पावगं-पाप का कारण हो। भगवं-भगवान। तं-उसको। अकुव्वं-न करते हुए। वियडं-प्रासुक निर्दोष आहार। भुंजित्था-ग्रहण करते थे। . मूलार्थ-आधाकर्म आहार को सब तरह से कर्मबन्ध का कारण जानकर भगवान ने उसका सेवन नहीं किया। भविष्य में पाप का कारण होने के कारण उसका सेवन न करते हुए भगवान ने निर्दोष आहार ही ग्रहण किया। हिन्दी-विवेचन साधना के लिए शरीर का स्वस्थ रहना आवश्यक है और शरीर को स्वस्थ रखने के लिए आहार आवश्यक है और आहार के बनने में हिंसा का होना भी प्रत्यक्ष दिखाई देता है। ऐसी स्थिति में पूर्ण अहिंसक साधक अपनी साधना कैसे कर सकता है? इसके लिए यह बताया गया है कि साधु पाक-क्रिया से सर्वथा दूर रहे। वह न
SR No.002206
Book TitleAcharang Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages1026
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size19 MB
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