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________________ 826 श्री आचाराङ्ग सूत्र, प्रथम श्रुतस्कंध मूलम् - अदुथावरा य तसत्ताए तसा य थावरत्ताए । अदुवा सव्व या सत्ता का कप्पिया पुढो बाला ॥14॥ छाया - अथ स्थावराश्च त्रसतया, त्रसाश्च स्थावरतया । अथवा सर्वयोनिकाः सत्त्वाः कर्मणा कल्पिताः पृथक् बालाः ॥ पदार्थ - अदु - अथवा। थावरा - पृथिवी आदि स्थावर । तसत्ताए - सकाय रूप में परिणमन होते हैं। य - समुच्चय अर्थ में है । तसाय - और त्रस जीव । थावरत्ताए - स्थावर बने उत्पन्न होते हैं । अदुवा - अथवा । सव्वजोणियासत्ता - प्राणी सर्व योनियों में आवागमन करने वाले होते हैं । वाला - अज्ञानी जीव । कम्मुणा - अपने कर्म से । पुढो - पृथक् रूप से । कप्पिया - संसार में स्थित हैं। मूलार्थ - -स्थावर जीव त्रस में उत्पन्न होते हैं और त्रस जीव स्थावरकाय में जन्म सकते हैं। या कहिए, संसारी प्राणी सब योनियों में आवागमन करने वाले हैं। और अज्ञानी जीव अपने-अपने कर्म के अनुसार विभिन्न योनियों में उत्पन्न होते हैं । हिन्दी - विवेचन J दुनिया में प्रत्येक प्राणी अपने कृतकर्म के अनुसार योनि को प्राप्त करता है । स्थावर काय में स्थित जीव अनन्त पुण्य का संचय करके त्रस काय में जन्म ले लेते हैं और पाप कर्म के द्वारा त्रस जीव स्थावर योनि में उत्पन्न हो जाते हैं । इसी तरह मनुष्य तिर्यञ्च, नरक, देव, मनुष्य आदि किसी भी गति में जन्म धारण कर सकता है। वह अपने कृत कर्म के अनुसार चार गति में से किसी एक गति में उत्पन्न होता है । कुछ लोग यह मानते हैं कि व्यक्ति जिस रूप में मरता है, उसी रूप में जन्म लेता है. जैसे स्त्री सदा स्त्री के रूप में ही रहती है और पुरुष पुरुष के लिंग में ही जन्म लेता है। परन्तु, यह मान्यता कर्म सिद्धान्त एवं अनुभव के आधार पर सत्य सिद्ध नहीं होती। यदि लैंगिक रूप कभी बदलता ही नहीं या उसका अस्तित्व कभी समाप्त ही नहीं होता, तो फिर ये समस्त कर्म निष्फल हो जाएंगे और यह हम प्रत्यक्ष में देखते हैं कि कर्म कभी निष्फल नहीं जाते । अतः हम कहते हैं कि संसार - परिभ्रमण में कभी भी लैंगिक एकरूपता स्थित नहीं रह सकती । पुरुष स्त्री एवं नपुंसक के लिंग में जन्म धारण कर सकता है। इसी तरह स्त्री एवं नपुंसक पुरुष के लिंग में जन्म ले सकते हैं.
SR No.002206
Book TitleAcharang Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages1026
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size19 MB
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