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श्री आचाराङ्ग सूत्र, प्रथम श्रुतस्कंध
बताए हैं। बादर अप्काय के शुद्ध उदक (जल) आदि 5 भेद हैं । बादर तेजस्काय (अग्नि) के भी अंगारा आदि 5 भेद हैं। बादर वायुकाय के भी उत्कालिक आदि 5 भेद हैं'। बादर वनस्पतिकाय के 6 भेद हैं-1-अग्रबीज, 2-मूलबीज, 3-पर्वबीज, 4-बीजरुह, 5-संमूर्छिम और 6-स्कन्ध बीज । वनस्पतिकाय प्रत्येक और साधारण शरीर की अपेक्षा से दो प्रकार के हैं। जिस वनस्पति में एक शरीर में एक जीव रहता हो वह प्रत्येक शरीर वनस्पति कहलाती है और जिसके एक शरीर में अनन्त जीव रहते हों वह साधारण वनस्पतिकाय कहलाती है। प्याज, लहसुन, मूली-गाजर, शकरकंद
आदि जमीन में पैदा होने वाले कंद-मूल साधारण वनस्पतिकाय या अनन्तकाय कहलाते हैं। शेष सभी प्रकार की वनस्पति के जीव प्रत्येक शरीर वनस्पति काय कहलाते हैं। त्रसकाय के 4 भेद हैं-द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय और पञ्चेन्द्रिय। इनके भी अवान्तर भेद अनेक हैं। इन सब का परिज्ञान करके भगवान समस्त प्राणियों की रक्षा करते हुए विचरते थे।
वर्तमान काल में वैज्ञानिक यंत्रों की सहायता से स्थावर जीवों की चेतना को
-उत्तराध्ययन सूत्र 36, 71, 73
-उत्तराध्ययन सूत्र 36, 86
1. दुविहा य पुढ़वीजीवा, सुहुमा बायरा तहा।
पज्जत्तमपज्जता, एवमेव दुहा पुणो॥ बायरा जे उ पज्जत्ता, दुविहा ते वियाहिया। सण्हा खरा य बोधव्वा सण्हा सत्तविहा तहिं।। कण्हा नीला य रुहिरा य, हालिद्दा सुक्किला तहा। पंडुपणगमट्टिया, खरा छत्तीसइविहा॥ 2. बायरा जे उ पज्जता, पंचहा ते पकित्तिया।
सुद्धोदए य उस्से य, हरतणु पहिया हिमे॥ 3. बायरा जे उ पज्जता णेगहा ते वियाहिया।
इंगाले मुम्मुरे, अगणी, अच्चिजाला तहेव य॥ उक्का विज्जू य बोधव्वाणेगहा एवमायओ।
एगविहमणाणत्ता, सुहुमा ते वियाहिया। 4. बायरा जे उ पज्जता, पंचहा ते पकित्तिया॥
उक्कलिया, मंडलिया घणगुजा सुद्धवाया य।
संवट्ठगवाया य णेगहा एवमायओ॥ 5. उत्तराध्ययन सूत्र 94-100
-उत्तराध्ययन सूत्र 36, 110-111
-उत्तराध्ययन सूत्र 36, 119-120