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________________ नवम अध्ययन, उद्देशक 1 823 - छाया- पृथिवीं च अप्कायं च, तेजस्कायं च, वायुकायं च। पनकानि बीजहरितानि, त्रसकायं च सर्वशः ज्ञात्वा॥ पदार्थ-पुढविं-भगवान महावीर पृथ्वी काय। आउकायं च-अप्काय। तेउकायं च-तेजस्काय। वाउकायं च-वायुकाय। पणगाई-निगोद-शैवाल के जीव आदि। बीय हरियाई-बीज और नाना प्रकार की हरी वनस्पति एवं । तसकायं च-त्रसकाय को। सव्वसो-सर्व प्रकार से। नच्चा-जानकर इस सब कायों की यतना करते हुए विचरते थे। मूलार्थ-भंगवान महावीर पृथ्वीकाय, अप्काय, तेजस्काय, वायुकाय पनकनिगोद, बीज, हरी वनस्पति एवं त्रसकाय के जीवों को सर्व प्रकार से जानकर इन सब कायों की रक्षा करते हुए विचरते थे। हिन्दी-विवेचन __ भगवान महावीर की साधना प्राणिजगत के हित के लिए थी। आगम में बताया गया है कि समस्त प्राणियों की रक्षारूप दया के लिए भगवान ने अपना प्रवचन दिया था। वे सब प्राणियों के रक्षक थे। उन्हें समस्त प्राणियों के स्वरूप का परिज्ञान था। क्योंकि जीवों की योनियों का परिबोध होने पर ही साधक उनकी रक्षा कर सकता है। ____ इसलिए प्रस्तुत गाथा में समस्त जीवों के भेदों का वर्णन किया गया है। समस्त जीव 6 प्रकार के हैं-1-पृथ्वीकाय, 2-अप्काय, 3-तेजस्काय, 4-वायुकाय, 5-वनस्पतिकाय और 6-त्रसकाय। पहले पांच प्रकार के जीव स्थावर कहलाते हैं और इनके केवल एक स्पर्श इन्द्रिय होती है। इस अपेक्षा से जीव दो श्रेणियों में विभक्त हो जाते हैं-1-त्रस और 2-स्थावर । स्थावर जीव सूक्ष्म और बादर के भेद से दो प्रकार के होते हैं। सूक्ष्म जीव समस्त लोक में व्याप्त हैं और बादर जीव लोक के एक भाग में स्थित हैं। बादर पृथ्वीकाय श्लक्षण और कठिन के भेद से दो प्रकार के हैं। श्लक्षण पृथ्वीकाय सात प्रकार के हैं-1-कृष्ण, 2-नील, 3-लाल, 4-पीत, 5-श्वेत, 6–पंडुक और 7-मटिया। कठोर पृथ्वीकाय के शर्करा आदि 36 भेद 1. सव्व जग जीव, रक्खण दयट्ठाए भगवया पावयणं कहियं। -प्रश्नव्याकरणसूत्र 2. सुहुमा सव्व लोगंमि, लोगदेसे य बायरा। -उत्तराध्ययनसूत्र 36, 79
SR No.002206
Book TitleAcharang Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages1026
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size19 MB
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