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________________ श्री आचाराङ्ग सूत्र, प्रथम श्रुतस्कंध इसलिए अंगोपांगों को संकोच कर वे स्थिर हो गए। इससे माता को गर्भ के मरने या गलने या गिरने का संदेह हो गया और सुख के स्थान में दुःख की वेदना बढ़ गई। इस बात को जानकर भगवान ने पुनः अपने शरीर का संचरण आरम्भ कर दिया। सारे घर में खुशी एवं आनन्द का वातावरण छा गया। उस समय भगवान ने यह प्रतिज्ञा की थी कि जब तक माता - पिता जीवित रहेंगे, तब तक मैं दीक्षा नहीं लूंगा । इस कारण भगवान ने 28 वर्ष तक दीक्षा की बात नहीं की। 28 वर्ष की अवस्था में माता-पिता का स्वर्गवास हो जाने पर आपने अपने ज्येष्ठ भ्राता से दीक्षा की आज्ञा मांगी तो उन्होंने उन्हें कुछ समय तक और ठहरने का आग्रह किया। भाई की बात को मानकर आप दो वर्ष और ठहर गए । परन्तु उन्होंने ये दो वर्ष अपनी साधना में ही बिताए। इन दिनों में सचित्त (सजीव अर्थात् कुएं, तालाब, नदी, वर्षा आदि के) पानी को नहीं पिया | 822 वे सदा एकत्व भावना में संलग्न रहते थे । इससे आत्मा के साथ संबद्ध राग-द्वेष आदि विकारों की द्वैतता के क्षय करने में प्रबल सहायता मिलती है और साधना में तेजस्विता आती है। आत्मा के शुद्ध स्वरूप के चिन्तन के कारण ही वे परीषहों को सहन करने में सक्षम बने । क्योकि, वे आत्मा के अतिरिक्त समस्त साधनों को क्षणिक, नाशवान एवं संसार में परिभ्रमण कराने वाले समझते थे । इस कारण भगवान सब साधनों से अलग होकर अपने एकत्व के चिन्तन में ही संलग्न रहते थे। प्रस्तुत गाथा में प्रयुक्त 'पिहियच्चे' का अर्थ है - जिसने क्रोध रूप ज्वाला को शान्त कर दिया है या जिसका शरीर गुप्त है - वस्त्र के अभाव में भी जो नग्न दिखाई नहीं देते हैं। इससे भगवान की निःस्पृहता स्पष्ट होती है । उन्होंने केवल वस्त्र आदि का ही त्याग नहीं किया था, अपितु क्रोध आदि कषायों से भी वे सर्वथा निवृत्त हो चुके थे | कठिन से कठिन परिस्थिति में भी उनके मन में क्रोध की, प्रतिशोध लेने की भावना नहीं जगती थी । वे शान्त भाव से सदा आत्मशोधन में संलग्न रहते थे । उनके त्यागनिष्ठ जीवन का वर्णन करते हुए सूत्रकार कहते हैं मूलम् - पुढविं च आउकायं च, तेउकायं च वाउकायं च । पणगाईं बीयहरियाई, तसकायं सव्वसो नच्चा॥12॥
SR No.002206
Book TitleAcharang Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages1026
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size19 MB
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