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________________ 816 श्री आचाराङ्ग सूत्र, प्रथम श्रुतस्कंध थे। शब्द तो उनके कानों में पड़ते थे, परन्तु उन्हें ग्रहण करने वाला मन या चित्तवृत्ति आत्मचिन्तन में लगी हुई थी। इसलिए उन्हें उनकी अनुभूति ही नहीं होती थी। क्योंकि मन जब तक किसी विषय को ग्रहण नहीं करता, तब तक केवल इन्द्रियां उसे पकड़ नहीं सकतीं। . ___ भरत चक्रवर्ती के समय की बात है कि उसने सुनार के मन में स्थित संदेह-“भरत चकवर्ती मेरे से अल्प परिग्रही कैसे हैं?" को दूर करने के लिए उसे एक तेल का कटोरा भरकर दिया और सुसज्जित बाजार का चक्कर लगाकर आने का आदेश दिया। साथ में यह भी सूचित कर दिया गया कि इस कटोरे से एक भी बूंद नीचे नहीं गिरनी चाहिए। यदि तेल की एक बूंद भी गिर गयी तो यह साथ में जाने वाले सिपाही ही तुम्हारे मस्तक को धड़ से अलग कर देंगे। वह पूरे बाजार में घूम आया। बाजार खूब सजाया हुआ था। स्थान-स्थान पर नृत्य-गान हो रहे थे, परन्तु, वह जैसा गया था, वैसा ही वापस लौट आया। जब भरत ने पूछा कि तुमने बाजार में क्या देखा? तुम्हें कौन-सा नृत्य या गायन पसन्द आया? तो उसने कहा महाराज, मैंने बाजार में कुछ नहीं देखा और कुछ नहीं सुना। यह नितान्त सत्य है कि मेरी आंख खुली थी और कानों के द्वार भी खुले थे। नृत्य एवं गायन की ध्वनि कानों में पड़ती थी और दृष्टि पदार्थों पर गिरती थी, परन्तु मेरा मन, मेरी चित्तवृत्ति तेल से भरे कटोरे में ही केन्द्रित थी। इसलिए उस ध्वनि को मेरा मन पकड़ नहीं पाया। जैसे समुद्र की लहरें किनारे से टकराकर पुनः समुद्र में विलीन हो जाती हैं, उसी तरह वह ध्वनि कर्णकुहरों से टकराकर पुनः लोक में फैल जाती थी। ____ भरत ने उसे समझाया कि तेरी और मेरी चित्तवृत्ति में यही अंतर है। तुम्हारा मन भय के कारण अपने आप में केन्द्रित था, परन्तु मेरा मन बिना किसी भय एवं आकांक्षा के अपनी आत्मा में केन्द्रित है। मैं संसार में रहते हुए भी संसार से अलग अपनी आत्मा में स्थित होने के लिए प्रयत्नशील हूं। सदा आत्मा को सामने रख कर ही कार्य करता हूं। इसलिए भगवान ऋषभदेव ने मुझे तुमसे अल्प परिग्रही बताया है। कहने का तात्पर्य यह है कि जब इन्द्रियों के साथ मन, चित्तवृत्ति या परिणाम की धारा जुड़ी हुई होती है, तभी हम किसी विषय को ग्रहण कर सकते हैं, परन्तु जब मन
SR No.002206
Book TitleAcharang Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages1026
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size19 MB
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