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________________ नवम अध्ययन, उद्देशक 1 805 सूत्रकार ने अपनी ओर से कुछ नहीं कहा है। वे कहते हैं कि जैसा भगवान महावीर ने अपनी संयम-साधना का वर्णन किया है, वही मैं तुम्हें सुनाता हूं। भगवान महावीर का जन्म क्षत्रियकुण्ड नगर में हुआ था। महाराज सिद्धार्थ उनके पिता एवं महारानी त्रिशला उनकी माता थीं। वे अपने किसी पूर्वभव में आबद्ध तीर्थंकर नाम कर्म के कारण इस अवसर्पिणी काल के 24वें तीर्थंकर हुए। जन्म के समय ही वे मति, श्रुत एवं अवधि तीन ज्ञान से युक्त थे। वे शरीर से जितने सुन्दर थे, उससे भी अधिक आपका अंतर जीवन दया, करुणा, क्षमा, उदारता एवं वीरता आदि गुणों से परिपूर्ण था। उनका विवाह यशोदा नाम की राजकुमारी के साथ हुआ और प्रियदर्शना नामक कन्या का जन्म हुआ, जिसका जमाली के साथ विवाह किया गया। आप संसार में रहते हुए भी संसार से अलिप्त रहते थे। आप गर्भ में की हुई अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार माता-पिता के जीवित रहते उनकी सेवा में संलग्न रहे। उनके स्वर्गवास के पश्चात् अपने ज्येष्ठ भ्राता नन्दीवर्द्धन के सामने दीक्षा लेने का विचार रखा। अभी माता-पिता का वियोग हुआ ही था, अतः वे भाई के विरह की - बात को एक दम सह नहीं सके। इसलिए बड़े भाई के अत्यधिक आग्रह के कारण आप दो वर्ष और गृहस्थवास में ठहर गए। इन दो वर्षों में त्याग-निष्ठ जीवन बिताते रहे। फिर एक वर्ष अवशेष रहने पर उन्होंने प्रतिदिन 1 करोड़ 8 लाख सोनैयों का दीन-हीन तथा गरीब जनों को दान देना आरम्भ किया और एक वर्ष तक निरन्तर दान देते रहे। - उसके पश्चात् मार्ग शीर्ष कृष्ण दशमी के दिन, दिन के चतुर्थ पहर में भगवान ने गृहस्थ जीवन का त्याग करके साधु जीवन को स्वीकार किया। गृहस्थ जीवन के समस्त वस्त्राभूषण आदि को उतार कर एवं पंचमुष्ठि लुंचन करके 'करेमि भंते' के पाठ का उच्चारण करके समस्त सावद्य योगों से निवृत्त होकर साधना जीवन में प्रविष्ट हुए और साधना जीवन में प्रवेश करते ही उन्हें चौथा मनःपर्यव ज्ञान उत्पन्न हो गया। इस समय इन्द्र ने उन्हें एक देवदूष्य वस्त्र प्रदान किया, जिसे स्वीकार करके भगवान महावीर ने वहां से कुमार ग्राम की ओर विहार कर दिया और साढ़े बारह वर्ष से कुछ अधिक समय तक मौन साधना एवं घोर तपश्चर्या के द्वारा चार घातिक कर्मों को सर्वथा क्षय करके केवल ज्ञान और केवल दर्शन को प्राप्त किया।
SR No.002206
Book TitleAcharang Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages1026
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size19 MB
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