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________________ 804 श्री आचाराङ्ग सूत्र, प्रथम श्रुतस्कंध कहूंगा। जिस प्रकार श्रमण भगवान महावीर ने कर्मों के क्षय करने और तीर्थ की प्रवृत्ति के लिए संयममार्ग में उद्यत होकर, तत्त्व को जानकर उस हेमन्त काल में तत्काल ही दीक्षित होकर विहार किया था। हिन्दी-विवेचन आचाराङ्ग सूत्र को प्रारम्भ करते समय आर्य सुधर्मा स्वामी ने यह प्रतिज्ञा की थी कि हे जम्बू! मैं तुम्हें वही श्रुत सुना रहा हूँ, जो मैंने श्रमण भगवान महावीर से सुना है। इसके पश्चात् आठ अध्ययनों में इस प्रतिज्ञा को फिर से नहीं दुहराया गया, परन्तु नौवें अध्ययन का प्रारम्भ करते हुए इस प्रतिज्ञा का उल्लेख फिर से किया गया है। इसका कारण यह है कि आठ अध्ययन साध्वाचार से संबन्धित थे, इसलिए उनमें बार-बार उक्त प्रतिज्ञा को दुहराने की आवश्यकता नहीं थी। परन्तु प्रस्तुत अध्ययन भगवान महावीर की साधना से सम्बद्ध होने से यह शंका हो सकती है कि सूत्रकार ने अपनी ओर से भगवान महावीर की स्तुति की है या उनकी विशेषता को बताने के लिए उक्त अध्ययन का वर्णन किया है। सूत्रकार के द्वारा आचाराङ्ग सूत्र के प्रारम्भ में की गई प्रतिज्ञा को पुनः दुहराने के बाद भी कुछ लोग प्रस्तुत अध्ययन को भगवान महावीर का गुण कीर्तन ही मानते हैं। उनका कथन है कि यह भगवान महावीर का यथार्थ जीवन-वर्णन नहीं, अपितु गणधरों ने उनके गुणों का वर्णन किया है। इस तरह की शंकाओं का निराकरण करने के लिए सूत्रकार ने इस "अहासुयं” प्रतिज्ञा - सूत्र का फिर से उल्लेख किया है। सूत्रकार ने प्रस्तुत अध्ययन में यह स्पष्ट कर दिया है कि भगवान महावीर के जीवन के सम्बन्ध में मैं अपनी ओर से कुछ नहीं कह रहा हूँ। मैंने भगवान महावीर से उनकी संयम साधना के विषय में जैसा सुना है, वैसा ही तुम्हें बता रहा हूँ, अर्थात् प्रस्तुत अध्ययन भगवान की स्तुति में नहीं, अपितु, भगवान महावीर की साधना का यथार्थ चित्र है। सूत्रकार ने सूत्रकृतांग के प्रथम श्रुतस्कन्ध के छठे अध्ययन में भगवान महावीर का गुण-कीर्तन किया है और उस अध्ययन का नाम है-वीर स्तुति अध्ययन। यदि प्रस्तुत अध्ययन में गणधर ने भगवान की स्तुति की होती तो वे सूत्र कृताङ्ग की तरह यहां भी उल्लेख करते। परन्तु उक्त अध्ययन में 1. अने इहां गणधरां भगवान रा गुण वर्णन कीधा। त्यां गुणां में अवगुणा ने किम कहे। गुणा में तो गुणा ने इज कहे। -भ्रमविध्वंसनम् पृष्ठ 231
SR No.002206
Book TitleAcharang Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages1026
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size19 MB
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