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________________ अष्टम अध्ययन, उद्देशक 8 795 शरीर का निरोध होने पर भी वह परीषहों से भयभीत होकर स्थानान्तर में न जाए। हिन्दी-विवेचन ___पंडितमरण को प्राप्त करने के लिए तीन तरह के अनशन बताए गए हैं-1-भक्त प्रत्याख्यान, 2-इंगितमरण और 3-पादोपगमन। पहले दो प्रकार के मरण का उल्लेख कर चुके हैं। अंतिम अनशन का उल्लेख करते हुए बताया गया है कि यह अनशन पूर्व के दोनों अनशनों से अधिक कठिन है। भक्त प्रत्याख्यान में साधक अपनी इच्छानुसार किसी भी स्थान पर आ-जा सकता है, परन्तु इंगितमरण में वह मर्यादित स्थान से बाहर शरीर का संचालन नहीं कर सकता और पादोपगमन में साधक बिलकुल स्थिर रहता है। वह जिस स्थान पर जिस आसन से-बैठे हुए या लेटे हुए, अनशन स्वीकार करता है, अन्तिम सांस तक उसी आसन से रहता है। इधर-उधर घूमना-फिरना तो दूर रहा, वह शरीर का संचालन भी नहीं कर सकता है। केवल' पेशाब एवं शौच आदि से निवृत्त हो सकता है। शारीरिक हलन चलन न करने के कारण तथा कभी मूर्छा आदि आ जाने पर उसे मृत समझ कर कोई पशु-पक्षी उसको खाने आएं, तो उनसे डरकर वह अन्य स्थान में नहीं जाए। वह वहीं निश्चेष्ट रहकर समभाव पूर्वक उत्पन्न होने वाले परीषहों को सहने करे। इसका तात्पर्य यह है कि अपने शरीर पर बिलकुल ध्यान न रखते हुए आत्म-चिन्तन में संलग्न रहे। यही इस अनशन की विशेषता है और इसी कारण यह पूर्वोक्त दोनों अनशनों से श्रेष्ठ माना गया है। वृत्तिकार का भी यही अभिमत है। इस बात का समर्थन करते हुए सूत्रकार कहते हैंमूलम्- अयं से उत्तमे धम्मे, पुव्वट्ठाणस्स पग्गहे अचिरं पडिलेहित्ता, विहरे चिट्ठे माहणे॥20॥ 1. स चायततरो न केवलं भक्त परिज्ञाया इंगित मरण विधिरायततरः अयं च तस्मादायततरः इति च शब्दार्थः । आयततर इत्याङभिविधौ सामस्त्येन यत आयत अयमनयो रतिशयेनायत आयततरः, यदि वाऽयमनयोरति शयेनात्तो गृहीत आत्ततरः, यत्नेनाध्यवसित इत्यर्थः, तदेव अयं पादोपगमनमरण विधिराततरो दृढ़तरः स्याद् भवेत् ।
SR No.002206
Book TitleAcharang Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages1026
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size19 MB
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