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अष्टम अध्ययन, उद्देशक 8
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मुंनि की योग्यता का उल्लेख किया गया है। उक्त अनशनों को स्वीकार करने वाला मुनि बाह्य एवं आभ्यन्तर ग्रन्थि से मुक्त एवं आचाराङ्ग आदि आगमों का ज्ञाता होना चाहिए। क्योंकि, आगम ज्ञान से संपन्न एवं बाह्य परिग्रह तथा कषायों से निवृत्त मुनि ही निर्भयता के साथ आत्म-चिन्तन में संलग्न रह सकता है और उत्पन्न होने वाले परीषहों को समभाव पूर्वक सह सकता है।
इंगितमरण अनशन के लिए कहा गया है कि गीतार्थ मुनि ही उसे स्वीकार कर सकता है। इस अनशन में मर्यादित भूमि से बाहर हलन-चलन एवं हाथ-पैर आदि का संकोच एवं प्रसार नहीं किया जा सकता। अतः इस अनशन को श्रुत ज्ञान सम्पन्न एवं दृढ़ संहनन वाला मुनि ही ग्रहण कर सकता है। इसी बात को बताने के लिए सूत्रकार ने 'दवियस्स वियाणओ' इन दो पदों का उल्लेख किया है। इनका अर्थ वृत्तिकार ने इस प्रकार किया है-“इंगित मरण अनशन व्रत को स्वीकार करने वाला मुनि कम से कम 9 पूर्व का ज्ञाता हो।” इससे यह भी स्पष्ट हो जाता है कि इतना ज्ञान प्राप्त करने वाले मुनि का संहनन कितना दृढ़ होगा।
इस विषय को और स्पष्ट करते हुए सूत्रकार कहते हैंमूलम् - अयं से अवरे धम्मे नाय पुत्तेण साहिए।
आयवज्जं पडीयारं, विजहिज्जा तिहातिहा॥12॥ छाया- अयं स अपरः धर्मः, ज्ञातपुत्रेण स्वाहितः।
आत्मवर्जं प्रतिचारं विजह्यात् त्रिधात्रिधा॥ पदार्थ-अयं से-यह। अवरे-अपर भक्त प्रत्याख्यान से भिन्न इंगित मरण रूप। धम्मे-धर्म का। नायपुत्तेण-भगवान महावीर ने। साहिए-प्रतिपादन किया है। आयवज्ज--आत्मा के। पडीयारं-प्रतिचार-अंगोपांगों के व्यापार का त्याग करे और। तिहातिहा-तीन करण एवं तीन योग से, आत्म-चिन्तन के अतिरिक्त अन्य क्रियाओं का। विजहिज्जा-विशेष रूप से त्याग करे।
मूलार्थ-इस भक्तप्रत्याख्यान से भिन्न इंगितमरण रूप धर्म का भगवान महावीर ने प्रतिपादन किया है। इसे स्वीकार करने वाला मुनि आत्म-चिन्तन के अतिरिक्त अन्य क्रियाओं का तीन करण और तीन योग से परित्याग करे।