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________________ अष्टम अध्ययन : विमोक्ष - अष्टम उद्देशक प्रस्तुत उद्देशक में पूर्व के उद्देशकों में उपदिष्ट बातों का वर्णन गाथाओं में किया गया है। सबसे प्रथम पंडितमरण के सम्बन्ध में उल्लेख करते हुए सूत्रकार कहते हैंमूलम्- अणुपुव्वेण विमोहाइं, जाइं धीरा समासज्ज। वसुमन्तो मइमन्तो, सव्वं नच्चा अणेलिसं॥1॥ छाया- आनुपूर्व्या विमोहानि, यानि धीराः समासाद्य। वसुवन्तः मतिवन्तः सर्वं ज्ञात्वा अनीदृशम्॥ पदार्थ-अणुपुब्वेण-अनुक्रम से। विमोहाइं-मोह से रहित। जाई-जो भक्त प्रत्याख्यान आदि मृत्यु। धीराः-धैर्यवान साधु । समासज्ज-प्राप्त करके। वसुमंतोसंयम-निष्ठ। मइमन्तो-बुद्धिमान। सव्वं-सब तरह के कर्तव्य-अकर्तव्य को। नच्चा-जानकर। अणेलिसं-अनुपम समाधि को प्राप्त करे। ___ मूलार्थ-अनशन करने के लिए जो संलेखना की विधि बताई गई है, उसके अनुसार धैर्यवान, ज्ञानसंपन्न, संयमनिष्ठ एवं हेयोपादेय का परिज्ञाता मुनि मोह से रहित होकर पंडितमरण को प्राप्त करे। हिन्दी-विवेचन यह तो स्पष्ट है कि जो जन्म लेता है, वह अवश्य मरता है। अतः साधक मृत्यु से डरता नहीं, घबराता नहीं। वह पहले से ही जन्म-मरण से मुक्त होने के लिए मृत्यु को सफल बनाने का प्रयत्न करना शुरू कर देता है। वह विभिन्न तपस्याओं के द्वारा अपनी साधना को सफल बनाता हुआ पण्डितमरण की योग्यता को प्राप्त कर लेता है। पंडितमरण के लिए 4 बातों का होना जरूरी है-1-संयम, 2-ज्ञान, 3–धैर्य और 4-निर्मोह भाव। संयम एवं ज्ञान सम्पन्न साधक ही हेयोपादेय का परिज्ञान करके दोषों का परित्याग करके शुद्ध संयम का पालन कर सकता है और धैर्य के
SR No.002206
Book TitleAcharang Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages1026
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size19 MB
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